Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 280
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] साध्य-साधक-अधिकार २४९ [मालिनी] जयति सहजतेजःपुञ्जमजत्रिलोकीस्खलदखिलविकल्पोऽप्येक एव स्वरूपः। स्वरसविसरपूर्णाच्छिन्नतत्त्वोपलम्भ: प्रसभनियमितार्चिश्चिच्चमत्कार एषः।। १२-२७५ ।। [सोरठा] झलके तीनो लोक सहज तेज के पुंज में। यद्यपि एक स्वरूप तदपि भेद दिखाई दें।। सहज तत्व उपलब्धि निजरस के विस्तार से। नियत ज्योति चैतन्य चमत्कार जयवंत है।।२७५।। खंडान्वय सहित अर्थ:- “एषः चिच्चमत्कारः जयति'' अनुभवप्रत्यक्ष ज्ञानमात्र जीववस्तु सर्व कालमें जयवन्त प्रवर्तो। भावार्थ इस प्रकार है कि साक्षात् उपादेय है। कैसी है ? "सहजतेजःपुञ्जमज्जत्रिलोकीस्खलदखिलविकल्पः'' [ सहज ] द्रव्यके स्वरूपभूत [ तेजःपुञ्ज ] केवलज्ञानमें [ मजुत् ] ज्ञेयरूपसे मग्न जो [ त्रिलोकी] समस्त ज्ञेय वस्तु उसके कारण [ स्खलत्] उत्पन्न हुआ है [अखिलविकल्पः] अनेक प्रकार पर्यायभेद जिसमें ऐसी है ज्ञानमात्र जीववस्तु। 'अपि'' तो भी "एक: एव स्वरूप:'' एक ज्ञानमात्र जीववस्तु है। और कैसी है ? 'स्वरसविसरपूर्णाच्छिन्नतत्त्वोपलम्भः'' [ स्वरस] चेतनास्वरूपकी [ विसर] अनन्त शक्ति उससे [ पूर्ण] समग्र है [अच्छिन्न] अनन्त काल तक शाश्वत है ऐसे [ तत्त्व] जीववस्तु स्वरूपकी [ उपलम्भः] हुई है प्राप्ति जिसको ऐसी है। और कैसी है ? "प्रसभनियमितार्चिः'' [प्रसभ ] ज्ञानावरण कर्मका विनाश होनेपर प्रगट हुआ है [ नियमित] जितना था उतना [अर्चिः] केवलज्ञानस्वरूप जिसका ऐसी है। भावार्थ इस प्रकार है कि परमात्मा साक्षात् निरावरण है।। १२२७५।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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