Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 254
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] स्याद्वाद-अधिकार २२३ ऐसा क्यों है ? "बाह्यार्थग्रहणस्वभावभरतः'' [बाह्यार्थ] जितनी ज्ञेयवस्तु उनका [ग्रहण] जानपना, उसकी आकृतिरूप ज्ञानका परिणाम ऐसा जो है [ स्वभाव] वस्तुका सहज जो कि [भरतः] किसीके कहनेसे वर्जा न जाय [छूटे नहीं] ऐसा अमिटपना, उसके कारण। भावार्थ इस प्रकार है कि ज्ञानका स्वभाव है कि समस्त ज्ञेयको जानता हुआ ज्ञेयके आकाररूप परिणमना। कोई एकान्तवादी एतावन्मात्र वस्तुको जानता हुआ ज्ञानको अनेक मानता है। उसके प्रति स्याद्वादी ज्ञानका एकपना साधता है -"अनेकान्तविद् ज्ञानम् एकं पश्यति'' [अनेकान्तविद् ] एक सत्ताको द्रव्यपर्यायरूप मानता है ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव [ज्ञानम् एकं पश्यति] ज्ञानवस्तु यद्यपि पर्यायरूपसे अनेक है तथापि द्रव्यरूपसे एकरूप अनुभवता है। कैसा है स्याद्वादी ? 'भेदभ्रमं ध्वंसयन्'' ज्ञान अनेक है ऐसे एकान्तपक्षको नहीं मानता है। किस कारणसे ? ''एकद्रव्यतया'' ज्ञान एक वस्तु है ऐसे अभिप्रायके कारण। कैसा है अभिप्राय ? "सदा व्युदितया'' सर्व काल उदयमान है। कैसा है ज्ञान ? "अबाधितानुभवनं'' अखण्डित है अनुभव जिसमें, ऐसी है ज्ञानवस्तु।। ४-२५० ।। __ [शार्दूलविक्रीडित] ज्ञेयाकारकलङ्कमेचकचिति प्रक्षालनं कल्पयन्नेकाकारचिकीर्षया स्फुटमपि ज्ञानं पशुर्नेच्छति। वैचित्र्येऽप्यविचित्रतामुपगतं ज्ञानं स्वतः क्षालितं पर्यायैस्तदनेकतां परिमृशन्पश्यत्यनेकान्तवित्।।५-२५१ ।। [हरिगीत] जो मैल ज्ञेयाकार का धो डालने के भाव से । स्वीकृत करें एकत्व को एकान्त से वे नष्ट हों।। अनेकत्व को जो जानकर भी एकता छोड़े नहीं। वे स्याद्वादी स्वतः क्षालित तत्व का अनुभव करें।।२५१।। खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि कोई मिथ्यादृष्टि एकान्तवादी ऐसा है कि वस्तुको द्रव्यरूप मात्र मानता है, पर्यायरूप नहीं मानता है। इसलिए ज्ञानको निर्विकल्प वस्तुमात्र मानता है, ज्ञेयाकार परिणतिरूप ज्ञानकी पर्याय नहीं मानता है, इसलिए ज्ञेयवस्तुको जानते हुए ज्ञानका अशुद्धपना मानता है। उसके प्रति स्याद्वादी ज्ञानका द्रव्यरूप एक पर्यायरूप अनेक ऐसा स्वभाव साधता है ऐसा कहते है – “पशुः ज्ञानं न इच्छति'' [ पशुः ] एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि जीव [ ज्ञानं] ज्ञानमात्र जीववस्तुको [न इच्छति] नहीं साध सकता है - अनुभवगोचर नहीं कर सकता है। कैसा है ज्ञान ? Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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