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समयसार-कलश
[भगवान् श्री कुन्द-कुन्द
अपि'' जैन मताश्रित हैं, बहुत पढ़े हैं, द्रव्यक्रियारूप चारित्र पालते हैं, मोक्षके अभिलाषी हैं तो भी उन्हें मोक्ष नहीं है। किनके समान ? “सामान्यजनवत्'' जिस प्रकार तापस योगी भरड़ा इत्यादि जीवोंको मोक्ष नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि कोई जानेगा कि जैनमत-आश्रित है, कुछ विशेष होगा सो विशेष तो कुछ नहीं है। कैसे है वे जीव ? ''तु ये आत्मानं कर्तारम् पश्यन्ति''[तु] जिस कारण ऐसा है कि [ये] जो कोई मिथ्यादृष्टि जीव [आत्मानं ] जीवद्रव्यको [ कर्तारम् पश्यन्ति] वह ज्ञानावरणादि कर्मको रागादि अशुद्ध परिणामको करता है ऐसा जीवद्रव्यका स्वभाव है ऐसा मानते हैं, प्रतीति करते हैं, आस्वादते हैं। और कैसै हैं ? "तमसा तताः'' मिथ्यात्वभाव ऐसे अंधकारसे व्याप्त है, अन्ध हुए हैं। भावार्थ इस प्रकार है कि वे महामिथ्यादृष्टि हैं जो जीवका स्वभाव कर्तारूप मानते हैं, कारण कि कर्तापन जीवका स्वभाव नहीं है, विभावरूप अशुद्ध परिणति है सो भी परके संयोगसे है, विनाशीक है।। ७-१९९ ।।
[अनुष्टुप] नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्ध: परद्रव्यात्मतत्त्वयोः। कर्तृकर्मत्वसम्बन्धाभावे तत्कर्तृता कुतः।।८-२०० ।।
[दोहा] जब कोई सम्बन्ध ना पर अर आतम मांहि । तब कर्ता परद्रव्य का किस विध आत्म कहाहि।।२००।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- "तत् परद्रव्यात्मतत्त्वयोः कर्तृता कुतः'' [तत्] तिस कारणसे [परद्रव्य ] ज्ञानावरणादि कर्मरूप पुद्गलका पिण्ड [ आत्मतत्त्वयोः] शुद्ध जीवद्रव्य इनमें [ कर्तृता] जीवद्रव्य पुद्गल कर्मका कर्ता, पुद्गलद्रव्य जीवभावका कर्ता ऐसा सम्बन्ध [कुतः] कैसे होवे ? अपितु कुछ नहीं होता। किस कारणसे ? "कर्तृकर्मसम्बन्धाभावे'' [कर्तृ] जीव कर्ता, [कर्म] ज्ञानावरणादि कर्म ऐसा है जो [ सम्बन्ध ] दो द्रव्योंका एक सम्बन्ध ऐसा [अभावे] द्रव्यका स्वभाव नहीं है तिस कारण। वह भी किस कारणसे? "सर्वः अपि सम्बन्धः नास्ति''[ सर्व:] जो कोई वस्तु है वह [अपि] यद्यपि एकक्षेत्रावगाहरूप है तथापि [ सम्बन्धः नास्ति] अपने अपने स्वरूप हैं, कोई द्रव्य किसी द्रव्यके साथ तन्मयरूप नहीं मिलता है, ऐसा वस्तुका स्वरूप है। इस कारण जीव पुद्गलकर्मका कर्ता नहीं है।। ८-२००।।
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