Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 246
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] सर्वविशुद्धज्ञान-अधिकार २१५ ___खंडान्वय सहित अर्थ:- "द्रव्यलिङ्गममकारमीलितैः समयसार: न दृश्यते एव'' [ द्रव्यलिंग] क्रियारूप यतिपना [ममकार ] 'मैं यति, मेरा यतिपना मोक्षका मार्ग ऐसा जो अभिप्राय उसके कारण [ मीलितैः ] अन्धे हुए हैं अर्थात् परमार्थदृष्टिसे शून्य हुए हैं जो पुरुष उन्हें [ समयसार: ] शुद्ध जीववस्तु [न दृश्यते] प्राप्तिगोचर नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है कि मोक्षकी प्राप्ति उनके लिए दुर्लभ है। किस कारणसे ? " यत् द्रव्यलिङ्गमइह अन्यतः, हि इदम् एकम् ज्ञानम् स्वतः'' [यत्] जिस कारणसे [ द्रव्यलिङ्गम् ] क्रियारूप यतिपना [ इह ] शुद्ध ज्ञानका विचार करनेपर [अन्यतः] जीवसे भिन्न है, पुद्गलकर्मसम्बन्धी है। इस कारण द्रव्यलिंग हेय है और [ हि] जिस कारण [इदं] अनुभवगोचर [ एकं ज्ञानं] शुद्ध ज्ञानमात्र वस्तु [स्वतः] अकेला जीवका सर्वस्व है, इसलिए उपादेय है, मोक्षका मार्ग है। भावार्थ इस प्रकार है कि शुद्ध जीवके स्वरूपका अनुभव अवश्य करना योग्य है।। ५१-२४३।। [ मालिनी] अलमलमतिजल्पैर्दुर्विकल्पैरनल्पैरयमहि परमार्थश्चेत्यतां नित्यमेकः। स्वरसविसरपूर्णज्ञानविस्फूर्तिमात्रान्न खलु समयसारादुत्तरं किञ्चिदस्ति।। ५२-२४४।। [हरिगीत] क्या लाभ है ऐसे अनल्प विकल्पों के जाल से । बस एक ही है बात यह परमार्थका अनुभव करो।। क्योंकि निजरस भरित परमानन्दके आधार से । कुछ भी नहीं है अधिक सुन लो इस समय के सार से।।२४४।। खंडान्वय सहित अर्थ:- ''इह अयम् एकः परमार्थः नित्यम् चेत्यतां'' [इह ] सर्व तात्पर्य ऐसा है कि [अयम् एकः परमार्थः] बहुत प्रकारसे कहा है तथापि कहेंगे शुद्ध जीवके अनुभवरूप अकेला मोक्षका कारण उसको [ नित्यम् चेत्यतां] अन्य जो नाना प्रकारके अभिप्राय उन समस्तको मेटकर इसी एकको नित्य अनुभवो। वह कौन परमार्थ ? "खलु समयसारात् उत्तरं किञ्चित् न अस्ति" [खलु ] निश्चयसे [ समयसारात्] शुद्ध जीवके स्वरूपके अनुभवके समान [ उत्तरं] द्रव्यक्रिया अथवा सिद्धान्तका पढ़ना लिखना इत्यादि [किञ्चित् न अस्ति] कुछ नहीं है अर्थात् शुद्ध जीवस्वरूपका अनुभव मोक्षमार्ग सर्वथा है, अन्य समस्त मोक्षमार्ग सर्वथा नहीं है। कैसा है समयसार ? “स्वरसविसरपूर्णज्ञानविस्फूर्तिमात्रात्' [स्वरस] चेतनाके [ विसर] प्रवाहसे [ पूर्ण] सम्पूर्ण ऐसा [ज्ञानविस्फूर्ति] केवलज्ञानका प्रगटपना [ मात्रात् ] इतना है स्वरूप जिसका, ऐसा है। आगे ऐसा मोक्षमार्ग है, इससे अधिक कोई मोक्षमार्ग कहता है वह बहिरात्मा है, उसे वर्जित करते हैं - "अतिजल्पैः अलं अलं'' [अतिजल्पैः ] बहुत बोलनेसे [अलम् अलम् ] बस करो बस करो। यहाँ दो बारके कहनेसे अत्यन्त वर्जित Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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