Book Title: Samay ki Chetna
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 54
________________ . चातुर्मास के दौरान लोग संतों के पास जाते हैं । प्रवचन सुनते हैं, सामायिक भी करते हैं और चार महीने गुजार देते हैं। कुछ लोग तो लोक दिखावे के लिए आ जाते हैं जबकि कुछ कुतूहल वश अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो वास्तव में अपनी मूर्छा तोड़ने में सफल हो पाते हैं। प्रादमी खुद ही अपनी मूर्छा नहीं तोड़ना चाहता, फिर रूपान्तरण कैसे घटित होगा। प्रवचन सुनते-सुनते वर्ष पर वर्ष बीत जाते हैं लेकिन हम वहीं रहते हैं जहाँ से शुरूपात करते हैं। कहते हैं : दशरथ के सिर में एक बाल सफेद दिखाई देने पर उन्होंने तुरन्त संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी, लेकिन हमारे तो सारे बाल सफेद हो जाते हैं, पर हम उसी छल-प्रपंच से चिपके रहते हैं । बार-बार कहा जाता है कि क्रोध मत करो, लेकिन आदमी इस पर नियन्त्रण नहीं कर पात।। जहां कहीं उसके मन माफिक काम नहीं हुआ, उसे गुस्सा आ जाता है। कहां गया आपका प्रतिक्रमण और सामायिक ? रोज प्रतिक्रमण करते हो, पापों की आलोचना करते हो, लेकिन उनसे पीछा नहीं छुड़ाते । यहाँ सामायिक करोगे और घर जाकर सब्जी में तेज नमक देखकर तुम्हें गुस्सा आ जाएगा। रोज प्रतिक्रमण करके पापों का प्रायश्चित करते हो, पर हर नये रोज उन्हीं गलतियों को दुहराते हो । धर्म स्थानों में की गई सामायिक या प्रतिक्रमण तो मात्र अभ्यास है, घर जाकर शांत रहे तभी उसकी वास्तविक सिद्धि होगी। सामायिक के दौरान मुहपत्ती रखते हो, घर जाते ही भूल जाते हो। एक घण्टे तो सामायिक की लेकिन शेष तेईस घण्टे उससे विपरीत काम किया, बोलो ! कहां से मिलेगी शाँति ? कहाँ रखा संतुलन ? ( ४६ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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