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लगता है ? मगर पैदा करना बिल्कुल दूसरी बात है। सिर्फ गोद लेने से मातृत्व भाव नहीं उमड़ेगा। नौ माह गर्भधारण का कष्ट, फिर बच्चे को जन्म देने से ही मां कहलाया जा सकता है।
इसलिए कहते हैं कि असली सत्य वह है जो हमारे भीतर पैदा होता है । कहीं बाहर से लाया गया सत्य हमारा कल्याण नहीं कर सकेगा । अपने सत्य को स्वयं पैदा करना पड़ता है। श्रद्धा हमारे हृदय की निजी ईजाद है, आविष्कृति है । हृदय स्वीकार हो जाता है। श्रद्धा का अर्थ है अपनी हार्दिकता जगाओ। अपने हृदय में मनुष्य का महत्त्व प्रतिष्ठित करो। मनुष्य में समाये परमात्मा से स्वयं का सामीप्य स्थापित करो।
मनुष्य एक मंदिर बने, यही हमारा लक्ष्य हो। अपनी चेतना के बन्द द्वार खोलें। चेतना के सोये पड़े बीजों को पनपाने की चेष्टा करें। अपने भीतर के मंदिर में ऐसा दीप रोशन करें, कि रोशनी हमें निहाल कर दे, जीवन को अमृत बना दे ।
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