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का सर्जक और संहारक है। समय ही गति और समय ही विध्वंसक
___समय ने केवल आज की रिश्वत भरी राजनीति ही नहीं देखी, महाभारत की छल-प्रपंच भरी राजनीति भी देखी है। उसने केवल नागासाकी को ही नष्ट होते नहीं देखा, द्वारका और कलिंग को भी खतम होते देखा है। उसने विदुर और शकुनि दोनों को एक युग में जिया है। समय तब भी था, अब भी है, सृष्टि के साथ सदा-सदा रहेगा। परिवर्तनशील, फिर भी शाश्वत ।
शिव का तीसरा नेत्र और कुछ नहीं, समय ही है। जिसे लोग शिव का तीसरा नेत्र कहते हैं, वह तो समय का पहला नेत्र है । इसलिए समय आंख है। आंखों की भीतर की प्रांख है। धरती का बीज है समय ।
समय ही जीवन है । जितना जीवन, उतना समय । न एक पल कम, न एक पल ज्यादा । समय ही मनुष्य के लिए जन्म का कारण बन जाता है और समय ही जीवन बन जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि समय ही मृत्यु हुना, यानी व्यक्ति का समय चुक गया। बाती बुझ गई ।
समय सबका एक जैसा हो, ऐसा भी नहीं है। समय कब कौन-सा रूप लेकर सामने आ जाए, कहा नहीं जा सकता। सबको समझा जा सकता है, पर समय को जितना समझने जानोगे, समय का दर्शन उतना ही गहराता चला जाएगा। समय का शास्त्र ही कुछ ऐसा है । और फिर समय के आकाश में चाहे जितना उड़लो, पक्षी का कोई पद-चिह्न पीछे नहीं बचता। अब तक न जाने कितने लोग धरती पर आए होंगे पर कितनों के पद-चिह्न बचे हैं पीछे । क्या हजारों
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