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भाई, समय को साधो। समय का सही उपयोग यही होगा कि हम सार्थक कामों में, सार्थक बातों में उसका लाभ उठायें।
, समय से जूझ कर कोई उसे नहीं साध पाया, भले ही वो सिकन्दर था या तीर्थंकर । सिकन्दर भी अपनी मृत्यु को एक क्षण आगे-पीछे नहीं कर सका। समय पर विजय तो कोई नहीं पा सकता, लेकिन उसे साधा जरूर जा सकता है। समय के साथ मैत्री जरूर की जा सकती है। जैसा समय चल रहा है, वैसा ही हम अपने आप में परिवर्तन करलें, समय की गुणवत्ता अहोभाव के साथ स्वीकार लें तो हम पर पड़ने वाली समय की मार हलकी हो जाएगी।
ग्रादमी जब समय के विरुद्ध चलना चाहता है तभी समय की मार पड़ती है । आदमी समय को साधले तो वह कई दुश्चिताओं से अपने आप को बचा लेगा। आदमी का बुरा समय भी आसानी से गुजर जाएगा। लोग बुरा समय आने पर पंडित-मौलवी के पास जाते हैं, जादू-टोना करवाते हैं, लेकिन इनसे कोई फायदा न होगा । हकीकत तो यह है कि अगर मनुष्य का स्वार्थ न हो तो आज आपको मन्दिरों में जो थोड़ी-बहुत भीड़ नजर आती है, वह भी नजर नहीं
आए। आदमी मंदिर इसीलिए जाता है कि उसकी गाड़ी चलती रहे । उसकी नैया न डूबे ।
मजे की बात तो यह है कि आदमी मन्दिर जाता है तो वहां भी शिकायत करता है। भगवान से प्रार्थना करता है कि अमुक को दो मंजिला मकान दे दिया, मेरा मकान एक मंजिला ही है। आदमी तो भगवान की जगह तक लेने को तैयार हो जाता है। वह भगवान से कहता है कि तुम्हारी जगह मुझे बिठा दो, मैं अपना तो उद्धार कर ही लूगा, तुम्हारा भी उद्धार कर दूंगा । असल में हर कोई अपना ही मला करने की सोचता है, उसे दूसरे से कोई लेना-देना नहीं है ।
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