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के, लाखों के ? तुम्हें मुश्किल से दस नाम भी याद नहीं होंगे । राम रहीम, कृष्ण - कबीर, महावीर - मुहम्मद, कितने नाम ? दस-बीस .... बस । समय आखिर सबको मिटा देता है । बसंत ऋतु लाने से पहले पतझड़ ले आता है । सबकी अकड़ धराशायी हो जाती
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सब समय-समय का खेल है, वक्त की बात है । पहिये का जो छोर भी ऊपर है, पता ही नहीं चलता वह कब नीचे आ जाये । नीचे का छोर कब ऊपर चढ़ जाये । समय अनुकूल है तो गरीब को अमीर बनते देर नहीं लगती । समय रूठ जाए तो महल - महराब कब धराशायी हो जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता ।
मेरे देखे, तो जीवन को समझने के लिए समय को समझना और समय की हर अनुकूल परिस्थिति को जीना चाहिये । समझदारी से अगर समय का उपयोग करो, तो प्रतिकूल समय में भी आप मस्त रहोगे । नासमझी से तो अनुकूल समय भी बरबादी का कारण बन जाता है । समय की समझ समय का बोध, समय की चेतना तो हर व्यक्ति को होनी ही चाहिये ।
यदि हम वास्तव में समय की आत्मा को छूना चाहते हैं तो सर्वप्रथम यह समझ लें कि समय आखिर है क्या ? समय का कोई आकार नहीं है । वह निराकार है । उसका रूप नहीं है, वह अदृश्य है । समय को छुआ नहीं जा सकता । वह अस्पर्श्य है । उसकी कोई मूर्ति नहीं है, जो हमें दिखाई दे । समय कोई रोटी या मिठाई का टुकड़ा नहीं है कि हम उसका स्वाद ले सकें । उसका कोई स्वाद नहीं है । वह अस्वाद्य है । समय को न तो देखा जा सकता है और न ही छुआ या चखा जा सकता है । इसके बावजूद समय जन्म से मृत्यु तक आदमी को घेरे रहता है ।
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