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गिर रहा है। ये रेत के करण जैसे-जैसे नीचे गिर रहे हैं, मृत्यु उतनी ही करीब पाती जा रही है । अन्तिम कण गिरते ही जीवन समाप्त हो जाता है । लेकिन समय की धारा विचित्र है। इस घड़ी को उल्टा करोगे तो फिर रेत नीचे आने लगेगी। ऐसे ही जन्म-मृत्यु की कथा लिखी जाती है। समय और जीवन की यही आत्म-कथा है।
___ समय हर युग---हर काल में रहा है । लोग मृत्यु को काल भी कहते हैं और समय को भी काल कहते हैं । यह गौर करने की बात है कि हम समय और मृत्यु, दोनों को काल कहते हैं । हकीकत तो यह है कि मृत्यु ही समय और समय ही मृत्यु है । इस धरती पर,
आसमान पर चाहे कितने भी परिवर्तन हो जाएं, चाहे जीवन ही समाप्त हो जाए, समय तो रहेगा। उसी गति से चलता जाएगा। समय के चलते ही तो ये सारी घटनाएं घटती हैं ।
भारतीय परम्परा में समय के चार खण्ड किए गए हैं । हालांकि समय को कभी खण्ड-खण्ड नहीं किया जा सकता, लेकिन लोगों ने अपनी सुविधा के अनुसार से खण्डों में विभक्त कर दिया है । प्रखंड के खण्ड ! हमने जीवन को बचपन, जवानी, वृद्धावस्था और मृत्यु के रूप में बांट दिया है। जीवन का कोई विभाजन नहीं होता । बचपन भी जीवन है, जवानी और बुढ़ापा भी जीवन ही है । तरस तो तब आता है जब आदमी बुढ़ापे में भी बच्चों की तरह करने लगता है। 'बूढ़ी काकी' की कहानी आपने पढ़ी हो तो आप अहसास कर सकते हैं कि बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन ही होता है ।
बूढ़े आदमी के मन में किसी चीज के प्रति उतनी ही लालसा हो सकती है जितनी किसी बच्चे के मन में । ये तो हम लोग हैं जिन्होंने समय का, जीवन का बंटवारा कर दिया है। जीवन तो
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