Book Title: Samay ki Chetna
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ क्रोध मनुष्य का स्वभाव है । लेकिन हम कोध कर रहे हैं, इस बात का हमें बोध है, तो यहां कर्मों की निर्जरा होगी । क्रोध पर विजय पाने का सूत्र देता हूं । आपको क्रोध आए तो सीमित शब्द बोलें । नपे-तुले शब्द बोलें । इससे आपका क्रोध घटने लगेगा । क्रोध तो स्वाभाविक है, नैसर्गिक है । जिस प्रकार सुन्दर चीज देखकर उत्तेजना आती है, वैसे ही क्रोध है । किसी ने आपको गाली दी, क्रोध आ गया । क्रोध आते ही पहचान लो कि क्रोध आ रहा है । सामने वाले को बोलने दो, खुद चुप हो जानो । वो कितनी देर गालियां देगा, आखिर तो थकेगा । जब वो थक जाए तो आपको उसने कितने शब्द कहे, उसे अपने थर्मामीटर में जांचों, परखो, उसका उत्तर तीन शब्दों में दे दो और चुप हो जाओ। आप ने यह काम सफलतापूर्वक कर लिया तो समझो क्रोध समाप्त हो गया है । आपने जिस पर क्रोध किया, वो व्यक्ति चला गया । बोध होगा तो आदमी अपने ही क्रोध पर हंसेगा । उसे विश्वास न होगा कि वह अपने पर क्रोध कर सकता है ? एक सज्जन मुझसे बात कर रहे थे । उन्होंने कहा दो दिन पहले मुझे क्रोध श्रा गया, मेरे नौकर ने कोई गलती कर दी, मैं उस पर बरसने वाला ही था कि मुझे आपका संकेत याद आ गया, मेरा क्रोध तुरन्त शांत हो गया । दस मिनट बाद मैंने अपने क्रोध को कुछ नपे-तुले शब्दों में प्रकट किया, आश्चर्य हुआ । मैं कुछ देर बाद अपने ग्राफिस पहुँचा तो वहां खिलखिलाकर हंस पड़ा । आफिस का स्टाफ मेरी शक्ल देखने लगा । एक सज्जन ने ध्यान शिविर में भाग लिया । उन्होंने ध्यान को अपने भीतर उतारा । सात दिन बाद उनकी हालत यह हो गई Jain Education International ( ११४ ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158