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बयान कर रही है। उन्हें यह अहसास भी नहीं रहा कि मैं उनके पास बैठा हूं। अपना दुःख या परेशानी किसी से कहकर आदमी हल्का होना चाहता है। वह समझता है दुख हल्का हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं होता। ऐसा करके वह केवल दुख का स्थानान्तरण करता है।
आपके घर में आकर कोई अपने घर का कचरा डालता है तो आपको बुरा लगता है, लेकिन अपने दिमाग का कचरा आपके दिमाग में भरता है तो आपको अच्छा लगता है। हम धूल-माटो का कचरा तो बर्दाश्त नहीं कर पाते, दिमाग का कचरा कैसे बर्दाश्त कर लेते हैं। हम पानी तो छानकर पीते हैं. लेकिन विचार बिना छाने ही ले लेते हैं। पानी तो बिना 'प्रासूक' किए पी लिया तो आफत नहीं आ जाएगी, लेकिन विचारों को बिना 'प्रासुक' स्वीकार कर लिया तो बड़ी परेशानी में पड़ जानोगे । आपके भीतर बैठे परमात्मा के लिए यह बहुत बड़ी हैवानियत होगी और तब प्रापका परमात्मा शैतान बनने लगेगा।
दूसरों को अपना प्रेम दो, लेकिन कचरा मत दो। पवित्रता दो, कलुषता मत दो। आप रावण के भीतर राम देख सको तो बड़ी बात होगी लेकिन राम के भीतर रावण हो तो उस राम को मत स्वीकारना। मैं एक बार एक सज्जन के यहां मेहमान था । मैंने देखा उस के दो बच्चे सड़क पर आती जाती भीड़ को देख रहे थे। थोड़ी देर में वे दोनों झगड़ने लगे। मैंने उन्हें अलग करते हुए झगड़े का कारण पूछा। एक बच्चे ने कहा कि यह मेरी कार को अपनी कार कह रहा है जबकि दूसरे बच्चे ने भी यही बात कही। मैं हैरान, क्योंकि मुझे तो वहाँ कोई कार दिखाई नहीं दी।
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