________________
में
लोग कहते हैं परमात्मा की खोज कर रहे हैं । परमात्मा खोया ही कहां है, जो उसकी खोज की जा रही है । परमात्मा खो जाए तो क्या हम जीवित रह सकते हैं ? उसके कारण ही तो हम जीवन है । किसी मछली को पानी से बाहर निकालोगे तो वह तड़फ तड़फ कर जान दे देगी । यही स्थिति तब होगी जब परमात्मा हम में से निकल जाएगा । इसलिए जो चीज खोई नहीं, उसकी खोज निरर्थक है । जिसका वियोग ही नहीं हुआ, उसका योग कैसे सम्भव है ! परमात्मा से न तो वियोग होता है और न ही योग होता है । परमात्मा तो हमारे में ही रचा-बसा है । तुम स्वयं अपने आप में परमात्मा हो ।
महावीर को कोई परमात्मा नहीं मिला, बुद्ध को कोई भगवान नहीं मिला । वे खुद ही परमात्मा हो गए, भगवान हो गए । परमात्मा कहीं से आता नहीं है, व्यक्ति को खुद ही परमात्मा होना पड़ता है । लेकिन हम लोग परमात्मा की कहीं और जाकर पूजा करते हैं । उसके दर्शन पाना चाहते हैं । अपनी आँखों से उसे देखना चाहते हैं और कानों से उसका संगीत सुनना चाहते हैं । नाक से परमात्मा की सुरभि का रस पान करना चाहते हैं । ये सब तो इन्द्रियां हैं और परमात्मा को कभी इन्द्रियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता । मनुष्य की ऐसी एक भी इन्द्री नहीं है जो भीतर की ओर मुड़ती हो । सभी इन्द्रियां बाहर की ओर जाती हैं । आँख प्रौर नाक दृश्य या ज्ञेय को पकड़ सकती हैं, लेकिन जो अदृश्य है, अज्ञेय है उसे नहीं पकड़ सकती । आदमी की मूढ़ता को देखो, वह इन इन्द्रियों के बल पर भगवान को ढूंढना चाहता है । इन्द्रियों द्वारा भगवान को अनुभव नहीं किया जा सकता, क्योंकि भगवत्ता तो अतीन्द्रिय है ।
Jain Education International
(
८४ )
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org