________________
इसलिए महावीर का जो अपरिग्रह है, परिग्रह को त्यागने की बात है, वह अप्रतिम है। ऐसा ही आदर्श गांधी का है, जिन्होंने दिखावे को लंगोटी नहीं पहनी। वे लंदन की संसद में भी उसी लंगोटी में गए, उसी अंगोछे में । लेकिन जहां अपरिग्रह के ये दो आदर्श हैं, वहीं परिग्रह के लिए दो नाम ले सकते हैं । पहला चक्रवर्ती भरत और दूसरा सम्राट सिकन्दर ।
भरत और बाहुबलि के बीच युद्ध हुआ था। भरत को समझ में आया कि वह विजय भला क्या विजय होगी, जिसमें भाई को हराना पड़े। भाई ही भाई पर सुदर्शन चक्र चलाए। उस विजय में नैतिकता कहां है ? बुजुर्गों ने जब भरत को समझाया तो उन्हें समझ में आया। सारी दुनिया समझती है कि राजनीति के छल प्रपंच सिर्फ महाभारत काल में ही हुए। छल-प्रपंच तो अवतारों/ तीर्थंकरों के समय भी हुए और आज भी जारी हैं।
___ इसी तरह दूसरा नाम सम्राट सिकन्दर का लें। सारे यूरोप को जीतते हुए जब सिकन्दर हिन्दुस्तान पहुंचा तो उसे कोई भी सम्राट या नरेश पराजित नहीं कर पाया। लेकिन वह यहां की नारियों से हार गया। सिकन्दर जब भोजन करने बैठा तो नारियों ने थाल ढंककर उनके आगे रख दिया। सिकन्दर ने जब थाल से कपड़ा हटाया तो उसका चेहरा तमतमा उठा। वह बोला-'यह क्या ? यह तो सोना-चांदी और हीरे हैं । मुझे तो रोटी चाहिए।'
नारियां भी कम न थी। उन्होंने कहा-'क्यों ? तुम ये सोना-चांदी ही तो लेने आए हो। रोटी तो तुम्हारे देश में भी थी। एक बात याद रखो सिकन्दर ! तुम यहां की धन-दौलत बटोरने के लिए जिस तरह यहां की जनता को उजाड़ रहे हो, एक दिन तुम
(
९४
)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org