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हैं तो हजारों फूल बरसा लेंगे। प्रतिमा को फूलों से ढक देंगे, मगर जरूरी नहीं है कि वो पूजा सार्थक ही हो । श्रद्धा और चीज है ।
दूसरों के बगीचे में लगे फूल तोड़ते समय आपका हाथ नहीं कांपेगा लेकिन स्वयं के बगीचे का फूल तोड़ना जैसे अपने अंग को अलग करने जैसा महसूस होगा। बाजार के लाख फूल की जगह आपकी श्रद्धा का एक फूल 'भारी' होगा। आप अपने बगीचे का फूल नहीं तोड़ पाएंगे । आपका श्रम, प्रेम उमड़ेगा । आप हिचकिचाएंगे ।
विश्वास और श्रद्धा की कथा अजीब है। आप विश्वास के साथ कह सकते हैं कि आप प्रात्मा हैं लेकिन आप श्रद्धा से यह बात नहीं कह सकते । आपको विश्वास है कि आप जैन हैं लेकिन आपको श्रद्धा नहीं है । हिंदुत्व का विश्वास है, पर हिंदुत्व की श्रद्धा नहीं है । विश्वास गणित की तरह है लेकिन श्रद्धा प्रेम की तरह है। विश्वास में दो और दो चार होते हैं लेकिन श्रद्धा में ये बाईस भी हो सकते हैं ।
प्रेम ऊंचाई पर पहुंचकर श्रद्धा बन जाया करता है। पतिपत्नी के बीच प्रेम होता है। कभी झगड़ा भी होता है मगर वो जल्दी ही निपट भी जाता है क्योंकि वहां श्रद्धा है। विश्वास को झुठलाया जा सकता है लेकिन श्रद्धा को नहीं ।
व्यक्ति के भीतर यह भाव आने पर कि मैं एक इन्सान हूं, मेरे भीतर श्रद्धाभाव है । प्रेम-मैत्री ही मेरा स्वभाव है। मैं समझता हूं कि ऐसा होता रहेगा तो सम्यक् दृष्टि को उपार्जित किया जा सकेगा।
श्रद्धा और विश्वास में अन्तर को समझना जरूरी है। बच्चे को पैदा करने व गोद लेने में कितना अन्तर है। गोद लेने में क्या
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