Book Title: Samay ki Chetna
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 63
________________ यहां सब रीते पात्र हैं। कितना भी उपलब्ध कर लो, परितृप्ति नहीं होती। एक गरीब आदमी दूकान की ओर दौड़ रहा है। वह ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि गरीब है, उसके पास पैसे नहीं हैं। लेकिन एक अमीर आदमी अगर ऐसा कर रहा है तो यह सोचने की बात है। यही तो व्यक्ति का राग है, मूर्छा है। उसका अंधापन है। आंख न होने से तो व्यक्ति अंधा हो सकता है, लेकिन उन लोगों का क्या किया जाए जो आंख होते हुए भी अंधों की तरह चल रहे हैं। ___ अंधा आदमी तो अपने भीतर की प्रांखें खुली रखता है इसलिए ठोकर खाने से बच जाता है लेकिन प्रांखों वाले कदम-कदम पर ठोकर खा जाते हैं। न जाने क्या मजा आता है, बार-बार ठोकर खाने में । यह तो ठीक ऐसा है जैसे किसी व्यक्ति को शरीर में खुजली हो जाए और वह खुजाने लगे, लेकिन इतना ध्यान रखिएगा कि खुजाने से कभी खुजली नहीं जाती बल्कि और बढ़ जाती है। आदमी खुजाता है, धीरे-धीरे मवाद निकलने लगता है लेकिन उसका खुजाना नहीं रुकता। आदमी जिन्दगी को भी ऐसे ही चलाना चाहता है लेकिन जिन्दगी कोई 'खुजाना' नहीं है । आज खुजाया, कल फिर खुजानोगे । अन्त कहां होगा। कल क्रोध किया था, आज भी क्रोध कर रहे हो और कल फिर क्रोध करने की सोच कर बैठे हो । कल किसी ने तुम्हारी तारीफ की तो तुमने अपने भीतर अहंकार के फूल खिलाए, आज भी यही कर रहे हो और कल फिर वही करने को तैयार हो । आखिर कहीं तो रुको। जीवन में जागरूकता की शुरुआत कब करोगे ? हम रोज ठोकर खाते हैं और रोज उसे दुहराते हैं। अज्ञान का अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति अनपढ़ है। अज्ञान का अर्थ यह है कि आदमी ने एक बार ठोकर खाई, लेकिन वह नहीं संभला । ( ५८ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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