Book Title: Samatvayoga Ek Samanvay Drushti
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Navdarshan Society of Self Development Ahmedabad

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Page 13
________________ वाली हो । इस प्रकार श्रमण संस्कृति का उपासक सम्यक् दृष्टि रखने वाला होता है, वह सभी परिस्थितियों में समत्व का ध्यान रखता है; वह प्राणीमात्र को अपने समान समझने वाला, सबके हित जार सुख का व्यवहार करने वाला, संयोगवियोग, दुःख-सुख, भवन-वन, शत्रु-मित्र आदि के प्रति समभाव रखने वाला होता है।' ___अहंकार, आसक्ति, गर्व आदि का त्याग कर तथा त्रस और स्थावर सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखने वाला व्यक्ति ही सम्यग् दृष्टि है, समतायोगी है। और ऐसा व्यक्ति ही मोक्ष पाता है। जैन दर्शन में समत्वयोग के महत्त्व को दिखाते हुए मैंने बौद्ध और भगवद्गीता के साधनामार्गों को इसके साथ निष्पक्ष रूप से प्रतिपादन किया है। अध्ययन की शैली तुलनात्मक है । मैंने यह स्पष्ट करने की तटस्थ रूप से कोशिष की है कि जैन, बौद्ध और भगवद्गीता के साधनामार्ग स्वतंत्र और भिन्न होते हुए भी मूलत: एक है । वास्तव में समत्व की प्राप्ति ही उनका मुख्य लक्ष्य है। इस विषय पर लिखते समय मुझे अपार आनन्द और आत्म-सन्तुष्टि की अनुभूति हुई है इसलिये मुझे आत्मविश्वास है कि प्रबुद्ध पाठकों को भी इसे पढ़ते समय आनन्द और शान्ति की अनुभूति होगी । कृतज्ञताज्ञापन : 'समत्वयोग, एक समन्वय दृष्टि' विषयक मेरे इस अध्ययन एवं क्तिन को मूर्त रूप प्रदान करने में । जिन महापुरुषों, विचारकों, दार्शनिकों, लेखकों, गुरुजनों एवं मित्रों का सहयोग रहा है उन सबके प्रति आभार प्रदर्शित करना मैं अपना पुनीत कर्तव्य समझती हूँ। सर्वप्रथम मैं श्री नवीनभाई शाह, ट्रस्टी, नवदर्शन सोसायटी, अहमदाबाद के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने मुझे इस कार्य को करने के लिए प्रेरित किया । उन्हीं की प्रेरणा, एवं सहयोग से मैं अपना यह कार्य पूर्ण कर सकी हूँ तथा आशा करती हूँ कि भविष्य में भी मुझे उनका सहयोग प्राप्त होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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