Book Title: Samanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 8
________________ आशीर्वचन ॥ नमो नमः श्रीगुरुनेमिसूरये ॥ स्थिर अजवाळू पथराशे विश्वभरमां आजे अनेकानेक क्षेत्रमा क्रान्ति आवी छे ते ज रीते वैचारिक क्षेत्रे पण क्रान्ति आवी छे. आजनो माणस जुदा जुदा विरुद्ध दिशाना विचाराने सांभळतो, वांचतो थयो छे तेथी ते सतत द्विधामां अटवातो रह्यो छे. तेवा समये आवा पुस्तकना वाचनथी साम-सामा छेडाना विचारोमां पण रहेली एकताना दर्शन थई शके छे. मारुं अq नम्र मंतव्य छे के कोईए पण जैनदर्शन विषे कशुंय बोलवू के लखवू होय तो तेनो व्यवस्थित अभ्यास करवो पछी ज ते विषे बोलवू के लखवं. अन्यथा तेने पूरो अन्याय थवा संभव छे. ते दिशामां पण डॉ. प्रीतम सिंघवीनो आ प्रयत्न जरूर स्थिर अजवाळू. पाथरनारो नीवडशे. हजी तेमना हाथे आवा ज पुस्तको आपणने मळता रहे तेवी आशा अस्थाने नहीं गणाय. पद्युम्नसूरि महाराज आंबावाडी, जैनउपाश्रय, अमदावाद-१५ नूतनवर्षारंभदिन वि.सं. २०५५

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