Book Title: Samaj aur Sanskruti Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 8
________________ प्रकाशक की ओर से आज अपने प्रेमी पाठको के कर-कमलों में, 'समाज और संस्कृति का नूतन पुष्प अर्पित करते हुए महती प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज के बिना वह जीवित नहीं रह सकता । समाज में उसका जन्म होता है, और समाज में ही उसका लालन-पालन एवं सम्बर्द्धन होता है । जब वह जन्म लेता है, तब उस समाज के प्रति जिसमें उसका जन्म हुआ है, उसे कर्तव्य का ज्ञान नहीं हो पाता । पर जैसे-जैसे उसका हृदय और बुद्धि विकसित होते जाते हैं वैसे-वैसे वह संस्कृति का बोध प्राप्त करता जाता है । संस्कृति के परिबोध से ही उसे यह परिज्ञान होता है, कि समाज की मर्यादा क्या है और मेरी अपनी मर्यादा क्या है ? व्यक्ति को जब अपनी सीमा और अपने समाज की सीमा का परिज्ञान हो जाता है, तब वह यह समझ पाता है, कि इस संसार में मेरा क्या कर्त्तव्य है और मुझे क्या करना चाहिए । जब तक मनुष्य को अपने कर्तव्य का परिज्ञान नहीं होता है, तब तक वह न अपना विकास कर पाता है और न अपने समाज का ही विकास कर पाता है । प्रस्तुत पुस्तक, 'समाज और संस्कृति में पूज्य गुरुदेव श्री उपाध्याय अमरचन्द्र जी महाराज के उन प्रवचनों का संकलन किया गया है, जो उन्होंने गत वर्षावास में, सन् १६६४ में जयपुर वर्षावास में दिए थे । यद्यपि पूज्य गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, फिर भी उन्होंने यदा-कदा जो प्रवचन दिए थे, उन प्रवचनों में से प्रस्तुत पुस्तक में मुख्य रूप से उन्हीं प्रवचनों का संकलन, सम्पादन एवं प्रकाशन किया गया है, जो समाज और संस्कति से सम्बन्धित थे । प्रस्तत पस्तक का सम्पादन श्री विजय मनि जी शास्त्री साहित्यरत्न ने किया है । सम्पादक की भाषा और शैली के सम्बन्ध में क्या लिखें, प्रत्येक पाठक उनकी मधुर भाषा और सुन्दर शैली से सुपरिचित है । इस पुस्तक में जिन प्रवचनों का प्रकाशन किया जा रहा है, आशा है, उनका परिशीलन करके पाठक अधिक से अधिक अध्यात्म लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे । हम जयपुर श्री संघ के और विशेषतः वहाँ के प्रबन्धकों के अत्यन्त कृतज्ञ हैं, एवं उन्हें धन्यवाद देते हैं, कि उन्होंने प्रस्तत प्रवचनों के प्रकाशन का अवसर हमें दिया ।। --ओम प्रकाश जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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