Book Title: Samaj aur Sanskruti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 7
________________ सम्पादक की ओर स Harmony सामञ्जस्य का होना ही वस्तुत; संस्कृति की मूल भावना है । आज के चिन्तक संस्कृति के चार अंग मानते हैं— तत्व - ज्ञान (Philosophy) नीति (Ethics) विज्ञान (Science) और कला (Culture) । दर्शन, धर्म, विज्ञान और कला – ये चारों अंग संस्कृति के हैं, अतः संस्कृति एक ऐसा रत्नाकर है, जिसमें सभी कुछ समाहित हो जाता है । संस्कृति को यदि समझने का प्रयत्न किया जाए, तो उसे समझा न जा सके, यह बात नहीं है । एक विद्वान् लिखा है — " बाहर की ओर देखो, अन्दर की ओर देखो, ऊपर की ओर देखो ।" बाहर की ओर देखना, विज्ञान है । अन्दर की ओर देखना, दर्शन है और ऊपर की ओर देखना, धर्म है । संस्कृति में विज्ञान भी है, दर्शन भी और धर्म भी है । संस्कृति जीवन का सारतत्व है । प्रस्तुत पुस्तक में, समाज और संस्कृति के मूल भूत भावों को व्यवस्थित करने का अपने में एक लघु प्रयत्न है । समाज और संस्कृति के संबन्ध में प्रस्तुत पुस्तक में सब कुछ आ गया है, यह दावा नहीं किया जा सकता । इतनी बात अवश्य ही जा सकती है, कि समाज एवं संस्कृति के मूल तत्वों को समझने के लिए प्रस्तुत पुस्तक पाठक का मनोरंजन अवश्य कर सकती है और साथ में उसे सोचने एवं समझने के लिए कुछ विचार - तत्व भी प्रदान कर सकती है । उपाध्याय श्रद्धेय श्री अमरचन्द्र जी महाराज के समाज और संस्कृति-विषयक गम्भीर चिन्तन को मैं कितना पकड़ सका हूँ, इसका निर्णय मैं पाठकों पर ही छोड़ता हूँ । - विजय मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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