Book Title: Samacharishatakam
Author(s): Samaysundar,
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
सामाचा-8 तब भवसिन्धुकुलगुरुपादमूले द्वादशावर्तवन्दना दियइ, शक्तिसंभवइ चउविहार उपवास प्रत्याख्यान करइ, सहि असं-12 पौषधग्रहरीशत- भाइ गुरूपदिशसिविहारोषासमस्याख्यान करइ, पछै एक खमासमणे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् बहुबेलं संदिसा- णाधिकारः कम् । वेमि भणी । बीय खमासमणे भगवन् बहुबेलं करेमि पाछइ एक खमासमणे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झायं संदि- ८५
सावेमि ३ घउत्थ खमासमणे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झायं करेमि इसु भणि ४ पांचमइ खमासमणे इच्छा० सं० ॥१६८॥
भ० चइसणं संदिसावेमि ५ छहइ खभासमणे इच्छा० सं०, भ० बइसणं ठाएमि इसुंभणइ ६ पछई उपधान तप तणर द्वादशावर्स वांदणा देइ करी मुहपत्ति मुखे देइ करी मधुरस्वरइ सज्झाय करइ इति । तओ जायाए पऊण पोरिसिए खमासमणदुगेण पडिलेहणं संदिसाविअ मुहपत्तिं य पडिलेहिय भोयणपाणभायणाइ पडिलेहइ, तओ पुणो सज्झायं करेइ जाव कालवेला ताहे आवस्सिआइ पुर्व चेइहरे गंतुं देवे वंदेइ, उबहाणवाही पुण पंचहिं सत्यएहिं देवे वंदेइ तओ जइ पारणाइ तओ पश्चक्खाणे पुश्चे खमासमणदुगपुवं मुहपत्ति पडिलेहि भणइ भातपाणी पारावेह उवहाणी नवकारसहिओ परविहारो इयरो भणइ पोरिसो पुरिमट्ठो वा तिविहाहारं चरविहाहारं वा एकासणं नीवी आंबिलं वा जाच काइवेलातीए भत्तपाणं परादेमित्ति, तओ सक्कथयं भणिय खणं सम्झायं च काऊं जहा संभवं अतिहिसंविभागं काऊं मुह हत्थे पहिले हिज नमुकारपुर्व अरत्त दुट्ठो असुरसुरं अचवचवं अद्धअम विलंचिों अपरिसाडिअं जेमेइ, तं पुण निम
W ॥१६८॥ घरे अहाप्पवत्तं फासुअंति पोसहसालाए वा पुषसंदिट्ठसयणोवणीयं न य भिक्खं हिंडइ, तओ आसणाओ अचलिओ चेव दिवसचरिमं पश्चक्खए तओ इरियावहियं पडिकमिज सकत्वयं भणइ, जह पुण सरीरचिंताए अट्ठो तो नियमा|
236

Page Navigation
1 ... 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393