Book Title: Samacharishatakam
Author(s): Samaysundar, 
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 378
________________ सामाचारीशतकम् । श्रुतदेवताकायोत्सगो ॥१८७॥ "यएमा प्रसादमख, संवाद भवन्ति भव्यजमानेवहाः। अनुयोगवेदिनस्तां, प्रयतः श्रुतदेवतां वन्दे ॥१॥” इति । श्रीअनुयोगद्वारवृत्तौ तथा--- "पंचविहायारविसुद्धिहेउमिह साहु सावगो वादि । पडिकमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्कोऽवि ॥१॥ वंदिनु चेइयाई, दाई चउरादिए खमासमणे । भूनिहियसिरो सयलाइयारमिच्छुक्कडं देइ ॥२॥ सामाइअपुचमिच्छामि अइउ काउस्सग्गमिच्चाइ इत्यादि १३ पुण पणवीसुस्सासं, उस्सगं कुणइ पारए विहिणा । तो सबलकुसलकिरिआ-फलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ १४ ॥ अह सुअसमिद्धिहे, सुअदेवीए करेइ उस्सग्ग। चिंतेइ नमुक्कारं, सुणइ य देइ य तीइ थुई। । १५ ॥ एवं खित्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ मुणइ देह धुई। पढिऊण पंचमंगल-मुवविसइ पमज संडासे ॥ १६॥ पुषविहिणेव पेहिअ, पुत्तिं दाऊणवंदणं गुरुणो । इच्छामो अणुसर्द्वि, ति भणिय जाणूहिँ तो ठाइ ॥ १७॥ गुरुथुइगहणे थुइ तिन्नि वद्धमाणक्खरस्सरो पढाइ । सक्करथयं थवं पढिअ कुणइ पच्छित्तउस्सर्ग ॥ १८ ॥ एवं ता देवसिअं, राइअमवि। एवमेव नवार तहिं । पढम दाउं मिच्छामि दुकर्ड पढइ सकश्यं ॥ १९॥ उष्ट्रिय करेइ विहिणा, उस्सग्ग इत्यादि गाथा ॥ २६ ॥ इच्छामो अणुसहि, ति भणिय उवविसिअ पढइ तिष्णि थुई । मिउसद्देणं सक-त्थयाइ तो चेइए वंदे ६ ।। २७ ।। अह पक्खियं चउद्दसि-दिणमि पुथं च तत्थ देवसि । सुतंत पडिकमिउं, तो सम्ममिमं कर्म कुणइ ! २८॥ मुह पोत्ती वंदणयं, संबुद्धाखामणं तहाऽऽलोए। बंदण पत्ते खामणं च वंदणयमह सुत्तं ॥ २९॥ सुत्तं अब्भुट्ठाण, उस्सग्गो 5 पुत्ति वंदणय तहय । पज्जतियखामणयं, तह चउरो छोभवंदणया ॥ ३०॥ पुवविहिणेव सवं, देवसिअंबंदणाइ तो कुणइ । ॥१८७॥ 274

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