Book Title: Sadhwachar ke Sutra Author(s): Rajnishkumarmuni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 74
________________ साधु प्रकरण १९. वर्ष में दस उदक-लेप करना। २०. वर्ष में दस मायास्थानों का सेवन करना। २१. सचित्त जल से लिप्त हाथ, कुड़छी या बर्तन से आहारादि लेकर खाना। प्रश्न २४४. अभिग्रहधारी साधु कौन होते हैं ? उत्तर-प्रतिज्ञा विशेष को अभिग्रह कहते हैं एवं द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को लक्ष्य कर मन में अभिग्रह धारण वाले साधु अभिग्रहधारी कहलाते हैं। प्रश्न २४५. साधु के बाईस परीषह कौन-कौन से हैं ? उत्तर-आपत्ति आने पर भी संयम में स्थिर रहने के लिए तथा कर्मों की निर्जरा के लिए जो शारीरिक तथा मानसिक कष्ट साधुओं द्वार सहे जाते हैं, उनको परीषह कहते हैं। वे बाईस हैं-१. क्षुधापरीषह-निर्दोष आहार न मिलने पर समभाव से भूख का कष्ट सहन करना। २. पिपासा-परीषह-अचित्त पानी न मिलने पर समभाव से तृषा को सहन करना। ३. शीत-परीषहसुरक्षित स्थान के अभाव में सर्दी का कष्ट सहना। ४. उष्ण-परीषहग्रीष्मकाल में गर्मी सहना। ५. दंशमशक-परीषह-डांस-मच्छर आदि के काटने पर समभाव रखना, जूं-चींटी आदि का कष्ट भी इसी परीषह में समझना चाहिए। ६. अचेल-परीषह-वस्त्र के अभाव में (जिनकल्प आदि की अपेक्षा) तथा आवश्यकतानुसार वस्त्र न मिलने पर स्वभाव से अवस्त्र रहना (चेल का अर्थ वस्त्र है)। ७. अरति-परीषह-संयम पालने में कठिनाइयां उत्पन्न होने पर भी उसके प्रति अरति-उदासीनता न आने देना एवं धैर्यपूर्वक संयम में रत रहना। ८. स्त्रीपरीषह-स्त्रियों द्वारा उपसर्ग करने पर भी विचलित न होना। ९. चर्यापरीषह-विहार के समय खिन्नता उत्पन्न होने पर धैर्य रखना। १०. निषद्यापरीषह-श्मशानादिक में स्वाध्याय-ध्यान करते समय उपसर्ग होने पर न बोलना। ११. शय्यापरीषह–प्रतिकूल शय्या-निवास स्थान प्राप्त होने पर क्षुब्ध न होना। १२. आक्रोशपरीषहकिसी के द्वारा धमकाए या फटकारे जाने पर क्रोध न करते हुए चुप रहना। १३. वधपरीषह-लकड़ी आदि से मारने पर भी मन में द्वेष न करना। १४. याचनापरीषह-भिक्षा मांगते समय होने वाले मानसिक कष्ट में समभाव रखना। १५. अलाभपरीषह-वस्तु के न मिलने पर संतप्त न होना एवं सोचना कि आज नहीं तो कल मिल जायेगी। १६. रोगपरीषह-रोग १. (क) उत्तरा. २ अध्ययन (ग) समवाओ २२/१ (ख) प्रवचनसारोद्धार ८६ द्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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