Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 160
________________ लब्धि, प्रतिमा प्रकरण १४३ अपने विशिष्ट तपोबल से भी यह लब्धि उपलब्ध कर लेते हैं। गौतम स्वामी जैसे महामुनियों को घोर तपस्या आदि द्वारा यह लब्धि अपनेआप प्राप्त हो जाती है। २४. आहारकलब्धि-प्राणीदया, तीर्थंकर भगवान के दर्शन तथा संशयनिवारण आदि कारणों से अन्य क्षेत्रों में विराजमान तीर्थंकरों के पास भेजने के लिए चौदहपूर्वधारी मुनि जो अति-विशुद्ध-स्फटिकरत्न के समान एक हाथ का पुतला निकालते हैं और उसकी सहायता से अपना इष्टकार्य सिद्ध करते हैं। वे मुनि आहारकलब्धिधारी कहलाते हैं। कार्य-सिद्धि के बाद वह पुतला मुनि के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है। यह समूची क्रिया अंतर्मुहूर्त में सम्पन्न कर ली जाती है। २५. शीतलतेजोलेश्यालब्धि-इस लब्धि वाले योगी करुणाभाव से प्रेरित होकर उष्णतेजोलेश्या से जलते हए अपने अनुग्रहपात्र व्यक्ति को बचाने के लिए शीतलतेज-विशेष को निकालते हैं। भगवान महावीर ने छद्मस्थअवस्था में इसी लब्धि द्वारा गोशालक को बचाया था। २६. वैकुर्विकदेहलब्धि-इस लब्धिवाले व्यक्ति विविध प्रकार के रूप बनाने में समर्थ होते हैं। देवों में यह लब्धि स्वाभाविक होती है और मनुष्य-तिर्यंचों का विशेष तपस्या द्वारा प्राप्त हो सकती है। २७. अक्षीणमहानसलब्धि--इस लब्धिवाले योगी भिक्षा में लाये हुए थोड़े-से आहार से सैकड़ों-हजारों साधुओं को भोजन करा देते हैं फिर भी वह ज्यों का त्यों अक्षीण बना रहता है। लब्धिधारी के भोजन करने पर ही वह समाप्त होता है। (महानस का अर्थ रसोई-भोजन है)। २८. पुलाकलब्धि-इस लब्धिवाले मुनि संघादि-रक्षा के लिए चक्रवर्ती की सेना को भी नष्ट कर डालते हैं। प्रश्न ३. अट्ठाईस लब्धियां किन-किन को उपलब्ध होती हैं? उत्तर-भव्य पुरुषों में सभी लब्धियां हो सकती हैं। भव्य स्त्रियों में अठारह हो सकती हैं। निम्नलिखित दस नहीं होती–१. अर्हल्लब्धि (अच्छेरा गिनती में नहीं) २. चक्रवर्ती ३. वासुदेव ४. बलदेव ५. संभिन्नश्रोत ६. चारण ७. पूर्वधर ८. गणधर ९. आहारक एवं १०. पुलाकलब्धि। प्रश्न ४. अट्ठाईस लब्धियों के अतिरिक्त क्या और भी लब्धियां हैं? उत्तर-अणुत्व-महत्त्व-लघुत्व-गुरुत्व-प्राप्ति-प्राकाम्य-ईशित्व-अप्रतिघातित्व १. प्रवचनसारोद्वार द्वार २७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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