Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 179
________________ १६२ २. थिरं - वस्त्र को मजबूती से स्थिर पकड़ना चाहिये । ३. अतुरियं - धीरे-धीरे तीन दृष्टि डालकर वस्त्र को देखना चाहिये । ४. पडिलेहे वस्त्र के तीन भाग करके उसे दोनों तरफ से अच्छी तरह देखना चाहिये । साध्वाचार के ५. पप्फोड़े - देखने के बाद वस्त्र को यतनापूर्वक धीरे-धीरे झड़काना चाहिये । ६. पमज्जिज्जा–झड़काने पर भी यदि वस्त्र पर लगा हुआ जीव न उतरे तो उसे पूंजनी आदि से उतारना चाहिये । प्रश्न ६. क्या प्रतिलेखन करना आवश्यक है ? सूत्र उत्तर - आवश्यक ही नहीं परम आवश्यक है। जो साधु जान-बूझकर अपने उपधि (वस्त्र - पात्रादि) को पडिलेहणा किये बिना रखता है उसे प्रायश्चित्त आता है । ' प्रश्न ७. प्रतिलेखन किस समय करनी चाहिए ? उत्तर- -सूर्योदय से करीब बीस मिनट पहले से लेकर सूर्य उ - उदय के बाद एक मुहूर्त दिन चढ़े तक प्रातः पडिलेहणा का समय है । उस समय गुरु को वन्दना करके उनकी आज्ञा लेकर पात्र, रजोहरण, वस्त्र आदि उपकरणों की प्रतिलेखन करना चाहिए । ३ सूर्य उगने से पहले ही प्रकाश हो जाने पर अर्थात् हाथों की अंगुलियों के चक्र आदि दिखने पर प्रतिलेखना की जाती है, वह प्राचीन परम्परा है। इसका आधार यह है कि सूर्य उगते ही आहार- पानी लेने की शास्त्र में आज्ञा है एवं पात्रों की पडिलेहणा किए बिना ले नहीं सकते अतः सूर्य उदय से कुछ समय पहले प्रकाश हो जाने पर प्रतिलेखना की जा सकती है। १. उत्तरा २७/२४ २. निशीथ २ / ५६ प्रतिलेखना करने के बाद कम से कम पांच गाथाओं का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये । तीन प्रहर दिन व्यतीत होने के बाद अर्थात् चौथे पहर में संध्यापडिलेहणा का समय माना जाता है। उस समय गुरु को वन्दना करके उनकी आज्ञा लेकर प्रथम स्वाध्याय करके फिर मुख - वस्त्रिका, शय्याबिछाने के वस्त्र आदि की प्रतिलेखना करनी चाहिए। Jain Education International ३. उत्तरा . २६ / २१ से २३ ४. ओघ नियुक्ति गा. २७० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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