Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 178
________________ २४. प्रतिलेखन प्रकरण प्रश्न १. प्रतिलेखना से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-अहिंसा महाव्रत की रक्षा के लिये अपने उपकरणों को विधिपूर्वक देखने का नाम पडिलेहणा (प्रतिलेखना) है। प्रश्न २. प्रतिलेखना के कितने पर्याय है? उत्तर–प्रतिलेखना, आभोग, मार्गणा, गवेषणा, ईहा, अपोह, प्रेक्षण, निरीक्षण, आलोकन, प्रलोकन आदि। प्रश्न ३. प्रतिलेखन करने वाले मुनि कितने प्रकार के होते हैं? उत्तर-१ तपस्वी (उपवास आदि करने वाले) २. आहारार्थी। प्रश्न ४. प्रतिलेखना का क्रम क्या है? उत्तर–दोनों ही मुनि सर्वप्रथम मुखवस्त्र और उससे अपने शरीर का प्रमार्जन करें। तत्पश्चात् तपस्वी मुनि गुरु, अनशनधारी, ग्लान, शैक्ष, आदि के उपकरणों की प्रतिलेखना करते हैं। फिर गुरु की अनुज्ञा प्राप्त कर पात्र, मात्रक तथा अन्य उपधि और अंत में चोलपट्टक की प्रतिलेखना करें। भक्तार्थी मुनि अपने चोलपट्टक, मात्रक, पात्र आदि की प्रत्युपेक्षा कर गुरु आदि कि उपधि की प्रत्युपेक्षा करते है। फिर गुरु से अनुज्ञापित कर शेष संघीय वस्त्र-पात्रों की प्रतिलेखना करते हैं और अंत में पादप्रोञ्छन (रजोहरण) की प्रत्युपेक्षा करे। प्रश्न ५. वस्त्र प्रतिलेखन करने कि विधि क्या है ? उत्तर-वस्त्र-प्रतिलेखना की विधि इस प्रकार है १. उड्ड–उत्कटुक आसन में बैठकर वस्त्र को तिरछा एवं जमीन से ऊंचा रखते हुए पडिलेहणा करनी चाहिए। ३. ओघनियुक्ति ६२८-६३० १. ओघनियुक्ति ३ २. ओघनियुक्ति ६२८-६३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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