Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 180
________________ प्रतिलेखन प्रकरण १६३ प्रश्न ८. प्रतिलेखना के दोष कौन-कौन से है? उत्तर–प्रतिलेखना के सात दोष है १. प्रशिथिल-वस्त्र को ढीला पकड़ना। २. प्रलम्ब–वस्त्र को विषमता से पकड़ने के कारण कानों को लटकाना। ३. लोल-प्रतिलेख्यमान वस्त्र का हाथ या भूमी से संघर्षण करना। ४. एकामर्श-वस्त्र को बीच में से पकड़कर उनके दोनों पाश्वों का एक बार में ही स्पर्श करना-एक दृष्टि में ही समूचे वस्त्र को देख लेना। ५. अनेक रूप धुनना-प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को अनेक बार (तीन बार से अधिक) झटकना अथवा अनेक वस्त्रों को एक साथ झटकना। ६. प्रमाण-प्रमाद-प्रस्फोटन और प्रमार्जन का जो प्रमाण (नौ-नौ बार करना) बतलाया है, उसमें प्रमाद करना। ७. गणनोपगणना-प्रस्फोटन और प्रमार्जन के निर्दिष्ट प्रमाण में शंका होने पर उसकी गिनती करना। प्रश्न ६. प्रतिलेखन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? उत्तर-निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए। १. अनर्तित-वस्त्र या शरीर कि न नचाए। २. अवलित-वस्त्र या शरीर को न मोड़े। ३. अननुबन्धि-वस्तु की दृष्टि से अलक्षित विभाग न करें। ४. अमोसली-वस्त्र का मूसल की तरह दीवार आदि से स्पर्शन न करें। ५. छह पूर्व-वस्त्र के दोनों ओर तीन-तीन विभाग कर उसे झटकाएं। ६. नव खोटक–प्रत्येक पूर्व में तीन-तीन बार खोटक (प्रमार्जन) करे। भाग में नौ खोटक होते है। तत्पश्चात् जो कोई प्राणी हो, उसका हाथ पर नौ बार विशोधन प्रमार्जन करे। प्रश्न १०. मुनि को भूमी की प्रतिलेखन कब और कौन कौन सी भूमी की करनी चाहिए? उत्तर-मुनि को दिन की अंतिम पौरषी का चतुर्थ भाग शेष रहने पर तीन भूमियों की प्रतिलेखन करनी चाहिए-१. उच्चारभूमी २. प्रस्रवण भूमी ३. काल (स्वाध्याय) भूमी। १. उत्तरा. २६/२७, भिक्षु आगम ३. (क) ओघ नियुक्ति ६३२-६३४ २. उत्तरा. २६/२४,२५ शावृ. ५४०-५४१ (ख) भिक्षु आगम शब्द कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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