Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 162
________________ १४५ लब्धि, प्रतिमा प्रकरण प्रकार की गोचरी करते हैं। वे अज्ञातकुल से व एक व्यक्ति के लिए बने हुए भोजन में से थोड़ा-सा लेते हैं। वह भी एक. पग देहली के अन्दर एवं एक पग देहली के बारह हो, ऐसे दाता के हाथ से लेते हैं। ठहरने के विषय में यह नियम है कि प्रतिमाधारी मुनि ज्ञात क्षेत्र में एक रात और अज्ञात क्षेत्र में एक या दो रात ठहर सकते हैं। अधिक जितने भी दिन ठहरें उतने ही दिनों का उन्हें छेद या तप आता है।' प्रश्न १०. विशेष प्रतिमाधारी मुनि कब-कब बोल सकता है ? उत्तर-१. याचनी-आहारादि वस्तु मांगते समय। २. पृच्छनी-मार्ग आदि पूछते समय। ३. अनुज्ञापनी-स्थान आदि की आज्ञा लेते समय। ४. पृष्ठव्याकरणी-प्रश्न का उत्तर देते समय। प्रश्न ११. प्रतिमाधारी मुनि किस प्रकार के उपाश्रय में ठहर सकते हैं? उत्तर-प्रतिमाधारी मुनि केवल तीन प्रकार के उपाश्रय (स्थान) में ठहर सकते हैं-बाग के मध्यवर्ती स्थान में, केवल ऊपर से छाये हुए स्थान छत्री आदि में तथा वृक्ष के मूल या वृक्ष के नीचे बने हुए किसी युद्ध गृह स्थान में। प्रश्न १२. प्रतिमाधारी कितने प्रकार की शय्या काम में ले सकते हैं? उत्तर-वे केवल तीन प्रकार की शय्या ले सकते हैं पृथ्वी की शिला (पत्थर की शिला), काष्ठ का पट्टा एवं पहले से पड़ा हुआ दर्भ (घास-विशेष) आदि का संथारा। प्रश्न १३. प्रतिमाधारी की क्या-क्या विशेषताएं होती हैं? उत्तर–प्रतिमाधारी मुनि जहां ठहरे हों, वहां यदि कोई स्त्री-पुरुष आ जाए तथा कोई आग लगा दे तो भी उन्हें वहां से निकलना नहीं कल्पता। किन्तु यदि कोई भुजा पकड़ कर बाहर निकाल दे तो जा सकते हैं। विहार करते समय यदि उनके पैरों में कंकर-पत्थर, कांटा-कांच-लकड़ी आदि लग जाए तथा आंखों में मच्छर आदि जीव, बीज या धूली गिर जाए तो उन्हें निकालना नहीं कल्पता। (जीव हिंसा की संभावना हो तो बात अलग है।) विहार करते समय जहां भी दिन अस्त हो जाए, उन्हें वहीं ठहरना पड़ता है, चाहे जल (सूखा जलाशय या जल का किनारा) हो, स्थल हो, १. दसाओ ७/६ से २६ तक ३. दसाओ ७/१० २. दसाओ ७/६ ४. दसाओ ७/१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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