Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 164
________________ लब्धि, प्रतिमा प्रकरण १४७ बारहवीं प्रतिमा एक रात की होती है। इसमें चौविहार तेला करके एक पुद्गल पर दृष्टि टिकाकर, नेत्रों को न हिलाते हुए कायोत्सर्ग आसन से ध्यान किया जाता है। इसकी आराधना करते समय देव - मनुष्य - तिर्यञ्च संबंधी उपसर्ग प्रायः होते ही हैं । उपसर्गों से घबराकर विचलित होने वाले साधु उन्माद को प्राप्त होते हैं ( पागल बन जाते हैं) या लम्बे समय के लिए भयंकर रोग से पीड़ित हो जाते हैं अथवा केवलिभाषित धर्म से भ्रष्ट हो जाते हैं । समतापूर्वक इसकी आराधना करने वाले मुनि अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान- इन तीनों में से कोई एक ज्ञान अवश्य प्राप्त करते हैं । ' १. दसाओ ७/२७-३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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