Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 165
________________ २०. व्यवहार प्रकरण प्रश्न १. साधु-साध्वियों की श्रावक क्या सेवा कर सकता है ? उत्तर-दर्शन करना, वंदना करना, सुखसाता पूछना, निकट बैठकर सत्संग करना, ज्ञान प्राप्त करना, आहार, पानी, वस्त्र, पात्र आदि बहराना। तथा साधुसाध्वियों के लिए आवश्यक वस्तु, जो स्वयं के पास नहीं है, कि तलाश (गवेषणा) करना, कल्पित (नियमानुसार) वस्तु, आहार, पानी, दवा आदि की भी दलाली करना, साथ में जाना आदि। प्रश्न ४. साधु-साध्वी घर पर पधारें तब श्रावक का क्या कर्तव्य है ? उत्तर-देखते ही तत्काल वंदना करें, 'मत्थएण वंदामि' बोले, पांच सात कदम सामने जाए, यह निवेदन करे–कृपा कराइये। वापस जाते समय विनम्रता पूर्वक कृतज्ञता ज्ञापित करे-आपने बड़ी कृपा की, शुभ दृष्टि की फिर कृपा कराना आदि सम्मान सूचक शब्दों का प्रयोग करे तथा बाहर तक पहुंचाने जाए। प्रश्न ५. साधु-साध्वियों को सर्प काटने पर कल्पनीय उपचार कैसे किया जाता है? उत्तर-मंत्रवादी सर्प काटे हुए पुरुष या स्त्री का मंत्रों द्वारा यदि सहज में उपचार कर रहा हो तो स्थविरकल्पिक मुनि जाकर बैठ सकते हैं एवं अपना इलाज करवा सकते हैं, किन्तु जिनकल्पिक नहीं करवा सकते।' प्रश्न ६. क्या साधु रात्रि के समय कथा कर सकते हैं? उत्तर–पुरुषों में तो विधिपूर्वक कथा की जा सकती है किन्तु यदि अकेली स्त्रियों की सभा हो तो साधुओं को उस समय प्रमाणरहित कथा करने की मनाही है। प्रमाण कथा या काल की अपेक्षा से समझना चाहिए। कथा की अपेक्षा ऐसी कथा नहीं कहनी चाहिए जो स्त्री सभा में शोभास्पद न हो। यदि केवल पुरुषों की सभा हो तो साध्वियों के लिए भी साधुओं की तरह १. व्यवहार ५/२१ २. निशीथ ८/१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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