Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 173
________________ २३. पात्र आदि भण्ड उपकरण प्रकरण प्रश्न १. साधु कितने प्रकार के पात्र रख सकते हैं? उत्तर-तीन प्रकार के पात्र रख सकते हैं-तुम्बा, लकड़ी एवं मिट्टी के। इनके सिवाय प्लास्टिक के बर्तन उपयोग में लेने की परम्परा है। लोहा, तांबा, सीसा, चांदी, सोना, पत्थर एवं रत्न आदि के पात्र लेने का निषेध है। प्रश्न २. साधु अपने पास कितने पात्र रख सकते हैं? उत्तर-तीन पात्र रख सकते हैं। तीन पात्र रखने का विधान यद्यपि स्पष्टरूप से नहीं मिलता लेकिन व्यवहार २/२८ के वर्णन से तीन पात्र से अधिक न रखने की ध्वनि निकलती है। इसके अलावा प्रश्नव्याकरण १०/७ में पात्र ढंकने के तीन पटल-वस्त्र खंड कहे हैं, उनसे भी तीन पात्र रखने का संकेत मिलता है। (साध्वियां एवं वृद्ध साधु चार पात्र रख सकते हैं।) प्रश्न ३. पात्रों के विषय में और क्या-क्या जानने लायक है ? उत्तर-पात्र के लिए दो कोस से आगे न जाना। अगर जाए तो एक रात्रि रहे बिना वापस नहीं आना, पात्र के तीन से अधिक टुकड़े नहीं जोड़ना एवं तीन से अधिक बंधन न लगाना, साधु के लिए खरीदा पात्र न लेना, उसके परिमाण से अधिक वार्निस-रोगन न लगाना आदि-आदि बातें साधु के लिए विशेष ध्यान देने योग्य हैं। प्रश्न ४. क्या साधु गृहस्थों के पात्रों में आहार कर सकते हैं? उत्तर-थाली-लोटा-गिलास आदि गृहस्थों के पात्रों में साधु को खाना-पीना नहीं कल्पता। गृहस्थों के बर्तनों में साधु खा-पी तो नहीं सकते लेकिन आवश्यकता होने पर अन्य कार्यों में उनका उपयोग करते हैं। जैसे–कांच की शीशी में दवा लाते हैं, खरल में दवा पीसते हैं, बर्तनों में वार्निस किये १. आ. श्रु. २ अ. ६ उ. १ सू. १ (ख) आ. श्रु. २, अ. ६, उ. १, सू. ३ २. निशीथ ११/१ ५. निशीथ १/४५, १४/१-२३-३४ ३. मर्यादावली धर्मोप्रकरण ब ६. दसवे. ६/५२ ४. (क) निशीथ ११/७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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