Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 149
________________ १३२ साध्वाचार के सूत्र प्रश्न २६. क्या साधु-साध्वी कुंआ, तालाब, नदी, वर्षा का पानी काम में ले सकते हैं? उत्तर-नहीं क्योंकि उसे सचित्त माना जाता हैं। प्रश्न २७. साधु केवल गर्म पानी ही ले सकते हैं या अन्य अचित्त पानी भी? उत्तर-जिस पानी का वर्ण, गंध, रस, स्पर्श बदल जाए वह प्रासुक होता है, वह पानी साधु ग्रहण कर सकता है। प्रश्न २८. शास्त्र में कौन से इक्कीस तरह के पानी का वर्णन है ? उत्तर-१. कठोती का जल (आटे का धोवन) २. ढोकला आदि का जल ३. चावलों का जल (जिसमें चावल धोये गये हों) ४. तिलों का जल ५. तुषों का जल ६. जवों का जल ७. ओसावण (चावल आदि को उबालने के बाद निकाला हुआ जल) ८. छाछ पर से उतारा हुआ खट्टा जल (आछ) ९. उष्ण जल १०. आम का धोवन ११. आम्रातक (फल विशेष) का धोवन १२. कपित्थ फल का धोवन १३. बिजोर फल का धोवन १४. दाखों का धोवन १५. दाडिम-अनार का धोवन १६. खजूर का धोवन १७. नारियल का धोवन १८. कैरों का धोवन १९. बेरों का धोवन २०. आंवलों का धोवन २१. इमली का धोवन तथा इनसे मिलतेजुलते दूसरे भी वे जल, जो अचित्त हों, साधु विधिपूर्वक ले सकते हैं। इस आगम-वचन के अनुसार साधु गुड़ का जल, चीनी का जल, दूध का बर्तन धोया हआ जल एवं राख से मांजे हुए लोटे-कलशे आदि का धोवन भी लेते हैं। किसी व्यक्ति के कच्चा पानी पीने का त्याग हो और उसने अपने लिए राख-चूना आदि डालकर पक्का पानी बनाया हो तो वह भी साधु विधिपूर्वक ले सकते हैं। पक्का पानी पीने वालों को यह बात ध्यान देने की है कि नाममात्र राख या चूने से पानी पक्का-अचित्त नहीं होता। उसका वर्ण-गंध-रस-स्पर्श बदलने से ही होता है। अन्यथा कच्चा ही रहता है। इसलिए समझदार व्यक्ति पानी में राख-चूना आदि डालकर उसे हाथ या लकड़ी से मिलाते हैं। राख आदि द्रव्य कितना डाला जाए यह बात अनुभवियों से समझने योग्य है। पानी या धोवन बनाने के बाद त्याग वालों को लगभग १०-१५ मिनिट तक काम में नहीं लेना चाहिए। १. आयार चूला अ. १३. ७-८, सू. ६६ से १०४ तक Jain Education International For Private &Personal-Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184