Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 108
________________ ६१ विहार प्रकरण २. दुर्भिक्ष होने से। ३. शत्रु द्वारा उठाकर नदी आदि में डाल देने पर । ४. बाढ़ आदि आने से नदी साधु को बहाकर ले जाये तो। ५. म्लेच्छों का उपद्रव होने पर। प्रश्न १०. क्या साधु नौका (नाव) में बैठ सकते हैं? उत्तर-चलकर पार नहीं किया जा सके-इतना जल यदि रास्ते में आ जाए तो नौका में बैठकर नदी आदि को पार कर सकते हैं लेकिन वह नौका ऊर्ध्वप्रतिस्रोतगामी, अधोअनुस्रोतगामी एवं तिर्यग्गामिनी न हो, उत्कृष्ट एक-आधा योजन से अधिक लंबा मार्ग न हो तथा गृहस्थ अपने काम के लिए उसे ले जा रहा हो एवं वह सहर्ष ले जाना स्वीकार करे तो अपने भण्डोपकरणों को एकत्रित कर विधिपूर्वक साधु नाव पर चढ़ सकते है। प्रश्न ११. क्या साधु-साध्वियां रात के समय विहार कर सकते हैं? । उत्तर-नहीं कर सकते । स्वाध्याय-ध्यान एवं स्थंडिलार्थ बाहर जा सकते हैं किन्तु अकेला जाना नहीं कल्पता। व्याख्यानादि करने के लिए लगभग डेढ़ सौ मीटर तक जाने की परम्परा है लेकिन मस्तक ढंक कर एवं पूंज-पूंज कर जाना चाहिए। प्रश्न १२. रात्रि विहार का निषेध क्यों किया गया? उत्तर-संभवतः दो कारण हैं-१. रात को दीखता नहीं और लंबे मार्ग में पूंज-पूंज कर चलना संभव नहीं। २. सूक्ष्मअप्काय की वृष्टि। भगवती १/६ में कहा गया है कि सूक्ष्मअप्काय हर वक्त बरसती है। दिन में गर्मी के कारण नीचे पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाती है लेकिन रात को नष्ट होने की संभावना कम रहने से नीचे गिरती है अतः उस समय पूर्वोक्त विशेष कार्यों के बिना साधुओं को घूमना-फिरना एवं विहार करना नहीं कल्पता। प्रश्न १३. क्या साधु अकेला विहार कर सकता है ? उत्तर-अव्यक्त अर्थात् ज्ञान एवं वय से अपरिपक्व साधु को अकेला विचरना उपयुक्त नहीं है। अकेला विचरने वाला साधु आठ गुणों से सम्पन्न होना चाहिए। आचार्य की आज्ञा या विशेष परिस्थिति की बात न्यारी। - ३. स्थानां. ८/१ १. आ. श्रु. २ अ. ३ उ. १/१४ २. बृहत्कल्प १/४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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