Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 136
________________ गोचरी प्रकरण ११६ प्रश्न १६. साधु को अपने स्थान पर आकर क्या-क्या करना चाहिए? उत्तर-अपने स्थान में प्रवेश करते समय साधु को विनयपूर्वक 'मत्थएण वंदामि' (निस्सही, निस्सही) कहना चाहिए एवं गुरु के समीप आकर गोचरी दिखा इरियावहिय पडिक्कमण सुत्तं का पाठ कर गोचरी में असावधानीवश लगे हुए दोषों की (पडिक्कमामि गोयरचरियाए भिक्खायरियाए आदि पाठ बोलकर) आलोचना करनी चाहिए। उसके बाद गुरु एवं सांभोगिक साधुओं को भिक्षा में प्राप्त भोजन के लिए निमंत्रित करना चाहिए कि हे महानुभावो! मुझे तारो एवं मेरी इस भिक्षा में से कुछ लेने की कृपा करो।' प्रश्न २०. मुनि को आहार क्यों करना चाहिए? उत्तर-मुनि को संयम यात्रा के सम्यक् निर्वाह के लिए आहार करना चाहिए। प्रश्न २१. आहार करते समय कौन-कौन-से दोष टालने आवश्यक हैं? उत्तर-पांच दोष टालने चाहिए वे ये है–१. संयोजना, २. अप्रमाण, ३. अंगार, ४. धूम ५. अकारण। प्रश्न २२. किन किन कारणों से साधु को आहार नहीं करना चाहिए? उत्तर--१. रोग उत्पन्न होने पर, २. राजा, स्वजन, देव, तिर्यंच आदि द्वारा उपसर्ग उपस्थित करने पर, ३. ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए, ४. प्राण-भूत-जीवसत्त्वों की दया के लिए, ५. तप करने के लिए, ६. अन्तिम-संलेखना संथारा कर शरीर को छोड़ने के लिए। उपरोक्त कारणों से आहार को त्यागना धर्म है किन्तु क्रोधादिवश भूख-हड़ताल करना धर्म में नहीं आता। प्रश्न २३. आहार करने के छह कारण कौन से हैं? उत्तर-१. भूख मिटाने के लिए २. सेवा के लिए ३. ईर्या समिति के पालन के लिए ४. संयम पालने के लिए ५. प्राण रक्षा के लिए ६. स्वाध्याय ध्यान आदि धर्म चिंतन के लिए। प्रश्न २४. आहार करते समय साधु को किन पांच बातों का ध्यान रखना चाहिए? उत्तर-(१) स्वाद के लिए न खाए (२) मात्रा से अधिक न खाए (३) लोलुपता से न खाए (४) आहार और दाता की निंदा करते हुए न खाए (५) कारण बिना न खाए। १. दसवें ५/१/८८ ४. उत्तरा. २६/३३-३४ २. उत्तरा. ८/११ ५. उत्तरा० २६/३१-३२ ३. उत्तरा. २४/१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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