Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 145
________________ १२८ साध्वाचार के सूत्र प्रश्न ७२. प्रथम प्रहर में लिया गया भोजन-पानी साधु कितने समय तक खाने-पीने के काम में ले सकता है ? उत्तर–प्रथम प्रहर में लिये गये आहार-पानी को तीन प्रहर तक खाने-पीने के काम में ले सकता है, उससे आगे नहीं। प्रश्न ७३. प्रथम प्रहर में गोचरी करने के बाद क्या साधु उस घर से द्वितीय प्रहर में गोचरी कर सकता है ? उत्तर-नहीं कर सकता प्रथम प्रहर, द्वितीय प्रहर और तृतीय प्रहर का कल्प एक होता है। इन तीन प्रहरों में एक बार गोचरी के बाद उस घर में गोचरी के बाद बना हुआ आहार-पानी साधु ग्रहण नहीं कर सकता। पहले बनी हई वस्तु ली सकती है। चतुर्थ प्रहर का कल्प अलग होता है। प्रश्न ७४. विगय का अर्थ समझाइये। उत्तर-विगय का अर्थ-विकृति पैदा करने वाला पदार्थ। विगय छह हैं-१. दूध, २. दही, ३. घी ४. तेल ५. कढ़ाई-विगय-चीनी मिश्री डालकर बनी हुई वस्तु तथा तली हुई वस्तु ६. चीनी (शक्कर), गुड़ आदि। (मद्य, मांस, मधु और मक्खन महाविगय है।) प्रश्न ७५. क्या साधु विगय ग्रहण कर सकता है ? उत्तर-सामान्यतः भिक्षा के रूप में शक्कर, मिश्री आदि विधिवत् ग्रहण कर सकता है। पर महाविग्रह में मद्य, मांस का ग्रहण कर ही नहीं सकता है। प्रश्न ७६. मिश्री आदि विगय की वस्तु साधु-साध्वियां स्वयं ले सकते हैं? उत्तर-नहीं ले सकते हैं, केवल मालिश आदि के तैल को छोड़कर। प्रश्न ७७. नित्यपिंड और सपिंड क्या होता है ? उत्तर-पिंड का अर्थ होता है, आहार-पानी। नित का अर्थ होता है, रोज। नित्य पिंड-अर्थात् रोज-रोज एक ही स्थान पर एक ही मालिक का आहारपानी लेना। और सपिंड का अर्थ होता है, कम से कम एक दिन छोड़कर आहार-पानी लेना। प्रश्न ७८. क्या साधु-साध्वी नित्यपिंड ले सकते हैं? उत्तर-सामान्यतः नित्यपिंड नहीं ले सकते किन्तु बीमारी या अन्य कारणवश दवा-पथ्य के रूप में लें तो प्रायश्चित्त का विधान है। प्रश्न ७६. अंधकार पूर्ण स्थान से या जहां पूरा प्रकाश न हो ऐसे स्थान से लाई गयी वस्तु क्या साधु ले सकता है ? उत्तर-नहीं ले सकता। क्योंकि उसमें हिंसा की संभावना रहती है। १. निशीथ १२/३१ ३. दसवें ३/८ २. स्थानां. ६/२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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