Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 142
________________ गोचरी प्रकरण १२५ को दान देना निरवद्य धार्मिक प्रवृत्ति है सामायिक में सावध प्रवृत्ति का ही त्याग होता है। प्रश्न ५३. गोचरी हो जाने के बाद क्या निवेदन करना चाहिए? उत्तर-आपने कृपा कराई, मेहरबानी कराई, हमें व्रत का लाभ दिया। आपके और कोई वस्तु की जरूरत हो तो फिर कृपा कराना, हम भावना भाते हैं। प्रश्न ५४. क्या साधु आमंत्रित भोजन ले सकता है ? उत्तर-नहीं, वे किसी गृहस्थ का निमंत्रण स्वीकार नहीं करते। प्रश्न ५५. क्या साधु आहारादि (अशन, पान, खादिम, स्वादिम) मांगकर ले सकते है ? उत्तर-जिस देश प्रांत में जन-साधारण का जो खाना हो वह भोजन उदर पूर्ति के लिए मुनि मांगकर ले सकते हैं। कारण से दवाई ले सकते हैं। पुस्तक, पन्ने वस्त्र-पात्र आदि प्रातिहारिक वस्तु की याचना मांगकर कर सकते हैं। इनके अतिरिक्त और कुछ नहीं मांग सकते। प्रश्न ५६. अतिथि संविभाग व्रत से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-यह श्रावक का बारहवां व्रत है साधु के भिक्षार्थ आने का कोई समय निर्धारित नहीं होता है। ऐसे त्यागी साधुओं का नाम अतिथि है। अपने लिए बनी हुई वस्तु का सम्यक् विभाग-हिस्सा करके अर्थात् स्वयं संकोच करके अतिथि को देना अतिथि संविभाग-व्रत हैं। इसका दूसरा नाम यथा संविभाग व्रत भी है। जहां पर साधु-साध्वियां का योग उपलब्ध न होने पर भी खाने के समय दान देने की भावना रखना अतिथि संविभाग व्रत है। प्रश्न ५७. यदि फ्रिज जिसमें फल सब्जी आदि रखें हो और वह चालू हो तो क्या उसमें से कोई अचित्त वस्तु निकाल कर साधु को बहरा सकते उत्तर-नहीं बहरा सकते क्योंकि चालू फ्रिज खोलने पर तेजस्काय की विराधना की संभावना रहती है। फ्रिज खोलने पर उसके हिलने से जीवों की विराधना होती है। यदि साधु के पधारने से पहले भी उनके लिए निकाल कर रखे तो वह भी अकल्पनीय होता है। क्योंकि साधु के लिए असूझती वस्तु सूझती करना भी दोष है। १. दसवे. ३/२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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