Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 135
________________ ११८ साध्वाचार के सूत्र प्रश्न-१४. साधु-साध्वियों को कितने प्रकार का दान दिया जाता है ? उत्तर-चौदह प्रकार का'-१. अशन (पकाया हुआ आहार-दाल, भात, रोटी आदि), २. पान (पानी), ३. खादिम (सूखा मेवा, फल आदि), ४. स्वादिम (सुपारी, लोंग, इलायची आदि मुखवास,) ५. वस्त्र, ६. पात्र, ७. कंबल (ऊनी वस्त्र), ८. पादप्रौंछन (रजोहरण), ९, पीठ (काष्ठ का छोटा पट्ट), १०. फलक (सोने का पट्ट), ११. शय्या (निरवद्य-स्थान मकान), १२. संस्तारक (घास का बिस्तर), १३. औषधि (शुद्ध दवा, एक ही वस्तु), १४. भैषज (कई औषधियों से बना चूर्ण, गोली, अवलेह आदि)। इसी प्रकार अन्य अचित्त पदार्थों का दान दे सकते हैं। प्रश्न १५. क्या साधु गोचरी में फल ले सकते हैं? उत्तर-सचित्त फल नहीं ले सकते । छिलके व बीज से रहित या अग्नि आदि के संस्कार द्वारा अचित्त किया हुआ फल हों तो विधिपूर्वक ले सकते हैं। किन्तु जिन (बेर-इक्षुखण्ड आदि) में खाने का अंश थोड़ा हो एवं फेंकने का अंश ज्यादा हो, वैसे अचित्त फल भी निषिद्ध हैं। प्रश्न १६. क्या साधु मेवा-मिष्टान्न आदि सरस आहार ले सकते हैं? उत्तर-यदि विधिपूर्वक सहजरूप में मिल जाए तो ले सकते हैं। इतिहास-विश्रुत घटना है-देवकीरानी के घर से मुनियों ने केसरिया मोदक लिए थे, ग्वाले के भव में शालिभद्र के जीव ने तपस्वी मुनि को खीर दी थीं, धन्य सार्थवाह के भव में ऋषभप्रभु के जीव ने मुनि को घी बहराया था एवं श्रेयांसकुमार के यहां भगवान् ऋषभ ने इक्षुरस लिया था। प्रश्न १७. साधु कितने प्रकार का आहार ले सकते हैं? उत्तर-वस्तुत साधु को चार प्रकार का आहार लेना कल्पता है-१. अशन २. पान ३. खादिम ४. स्वादिम। प्रश्न १८. निर्दोष विधि से गोचरी करने के बाद साधु को क्या करना चाहिए? उत्तर-साधु को भिक्षा लेकर अपने स्थान में आना चाहिये। यदि कारणवश चाहे तो आज्ञा लेकर गृहस्थ के घर में, कोठे में या भीत की ओट में बैठकर विधिपूर्वक आहार कर सकता है। सामान्यतः गृहस्थों के घरों में भोजन करना उचित नहीं लगता। १. भगवती २/१४ ४. निशीथ १२/३१ २. दसवे. ३/७,५/१/७० ५. दसवे. ५/१/८२-८३ ३. दसवे. ५/१/७३-७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184