Book Title: Rajprashniyasutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
View full book text
________________
सूर्यकान्ता राजीव० सूर्यकान्त कुमारव० चित्रसारथिव० मु०४९
श्रीराजप्रश्नी * पएसिस्स रण्णो जेटे पुत्ते सूरियकताए देवीए अत्तए सूरियकते नाम कुमारे होत्था, सुकुमालपामलयगिरी-IA
णिपाए जाव पडिरूवे । से णं सूरियकते कुमारे जुवरायावि होत्था, पएसिस्स रन्नो रजं च रहें च या वृत्तिः
बलं च वाहणं च कोसं च कोडागारं च अंतेउरं च जणवयं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे २ विहरइ ॥(सू० ५०)॥ 'तस्स णं पएसिस्स रन्नो सूरीकंता नाम देवी होत्था,सुकुमालपाणिपाया'इत्यादि देवीवर्णनं प्राग्वत् । प्रदेशिना राज्ञा सार्द्धमनुरक्ता अविरक्ता-कथञ्चिद्विप्रिय करणेऽपि विरागाभावात् । कुमारवर्णनं 'सुकुमालपाणिपाए' इत्यादि जाव |
त्यादि जाव 'सुन्दरे' इति, अत्र यावत्करणात् ' अहीणपंचिंदियसरीरे लक्खणवंजणगुणोववेए माणुम्माणपमाणपडिपुष्णसुजायसवंगसुन्दरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदरिसणे सुरूवे' इति द्रष्टव्यं, एतच्च देवीवर्णकवत् स्वयं परिभावनीयं, स च सूर्यकान्तो नाम कुमारो युवगजा अभूत, प्रदेशिनो राज्ञो राज्य-राष्ट्रादिसमुदायात्मकं राष्टं च-जनपदं च बलं च-हस्त्यादिसैन्य वाहनं च-वेगसरादिक कोशं च-भाण्डागार कोष्ठागारं च-धान्यगृहं पुरं च-नगरमन्तःपुरं च-अवरोधं चात्मनैव-स्वयमेव समुत्प्रेक्ष- | माणो-व्यापारयन् ॥ (मू० ४९-५०)।
तस्स णं एसिस्स रन्नो जेट्टे भाउयवयंसए चित्ते णाम सारही होत्था अड़े जाव बहुजणस्स अपरिभूए सामदंडभेयउवप्पयाणअत्थसत्थईहामइविसारए उप्पत्तियाए वेणतियाए कम्मयाए पारिणामियाए चउबिहाए बुद्धीए उववेए, पएसिस्स रणो बहुमु कलेसु य कारणेसु य कुटुंबेसु
॥११॥
Jain Education
For Personal & Private Use Only
Aw.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302