Book Title: Rajprashniyasutram
Author(s): Malaygiri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 256
________________ श्रीराजप्रश्नी मलयगिरीया वृत्ति ॥१२७ ॥ जाव लभइसवणयाए, एवं उवस्सयगय गोयरग्गगयं समणं वा जाव पज्जुवासइ विउलेणं जाव पडिलाभेइ अट्ठाइं जाव पुच्छइ, एएणवि०, जत्थवि य णं समण वा अभिसमागच्छइ तत्थवि यणं णो हत्थेण वा जाव आवरेत्ताणं चिट्ठइ, एएणवि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभइ सवणयाए, तुझंच चित्ता! पएसी राया आरामगयं वा तं चेव सर्व भाणियह आइल्लएणंगमएणं जाव अप्पाणं आवरेत्ता चिट्टइ,तं कह णचित्ता! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खिस्सामो?, तए णं से चित्ते सारही केसिकुमारसमणं एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अण्णया कयाई कंबोएहि चत्तारि आसा उवणयं उवणीया ते मए पएसिस्स रणो अन्नया चेव उवणीया, तं एएणं खलु भते! कारणेणं अहं पएसिं रायं देवाणुप्पियाणं अंतिए हमाणेस्सामो, तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे पएसिस्स रन्नो धम्भमाइक्खमाणा गिलाएजाह, अगिलाए णं भंते! तुम्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेजाह, छंदेणं भंते ! तुझे पएसिस्स रज्णो धम्ममाइक्खेज्जाह, तए णं से केसीकुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-अवियाई चित्ता ! जाणिस्सामो । तए णं से चित्ते सारही केसि कुमारसमण वंदइ नमंसइ २ जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ २त्ता चाउरघंटं आसरहं दुरुहइ जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ (सू०६१)॥ 'जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छित्ता केसीकुमारसमणं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तंजहा--सचित्तानां प्रदेशिबीधाय श्रावस्त्यागमन विज्ञप्तिः | सू०६० धर्मस्य लाभालाभकारणानि मु०६१ ॥ १२७॥ Jain Educational For Personal & Private Use Only न w .jainelibrary.org

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