Book Title: Rajprashniyasutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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तीसे कडागारसालाए सव्वतो समंता घणनिचियनिरंतरणिच्छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेइ, तीसे कूडागारसालाए बहमज्झदेसभाए ठिच्चा त भेरि दंडएणं महया २ सद्देणं तालेजा, से गूणं पएसी! से सद्दे णं अंतोहिंतो बहिया निग्गच्छइ, हंता जिग्गच्छइ, अत्थिणं पएसी! तीसे कूडागारसालाए केइ छिड्डे वा जावराई वा जओ णं से सद्दे अंतोहिंतो बहिया णिग्गए?, नो तिणटे समढे, एवामेव पएसी! जीवेवि अप्पडिहयगई पुढवि भिच्चा सिलं भेच्चा पव्वयं भिचा अंतोहितो बहिया णिगच्छइ, तंसदहाहि णं तुमं पएसी! अण्णो जीवो तं चेवशतए णं पएसी राया केसिकुमारसमणं एवं वदासी-अत्थि णं भंते ! एस पण्णाउवमा इमेण पुण कारणं णो उवागच्छइ, एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए जाव विहरामि, तए णं ममंणगरगुत्तिया ससक्खं जाव उवणति, तए णं अहं (तं) पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि जीवियाओ ववरोवेत्ता अयोकुंभीए पक्खिवामि २ त्ता अउमएणं पिहावेमि जाव पञ्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि, तए णं अहं अन्नया कयाई जेणेव सा कुंभी तेणेव उवागच्छइ २त्ता त अउकुंभिं उग्गलच्छावेमि २त्ता तं अउकुंभी किमिकुंभिंपिव पासामि णो चेव णं तीसे अउकुंभीए केइ छिड्डेइ वा जावराई वा जताणं ते जीवा बहियाहिंतो अणुपविट्ठा, जति णं तीसे अउकुंभीए होज केइ छिड्डेइ वा जाव अणुपविट्टा तेणं अहं सद्दहेजा जहा अन्नो जीवो तं चेव, जम्हा णं तीसे अउकुंभीए नत्थि कोइ छिड्डेइ वा जाव
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