Book Title: Rajprashniyasutram
Author(s): Malaygiri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 265
________________ पुरिसे तुम एवं वदेज्जा-मा ताव मे सामी ! मुहुत्तगं हत्यच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ ववरोवेहि जाव तावाहं मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणं एवं वयामि-एवं खलु देवाणुप्पिया! पावाई कम्माई समायरेता इमेयारूवे आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुम्भेवि केइ पावाई कम्माई समायरउ, मा णं सेऽवि एवं चेव आवई पाविज्जिहिइ जहा णं अहं, तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमह पडिसुज्जासि ?, णो तिणढे समढे, जम्हा णं भंते ! अवराहीणं से पुरिसे, एवामेव पएसी! तववि अज्जए होत्था इहेव सेयवियाए णयरीए अधम्मिए जाव णो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेइ, से णं अम्ह वत्तवयाए सुबहुं जाव उववन्नो, तरस णं अज्जगस्स तुम णत्तुए होत्था इट्टे कंते जाव पासणयाए, से णं इच्छइ माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हमागच्छित्तए, चउहि ठाणेहिं पएसी अहुणोववण्णए नरएमु नेरइए इच्छेइ माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ अहुणोववन्नए नरए नेरइए, सेणं तत्थ महन्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेजा माणुस्सं लोगं हवं०णो चेवणं संचाएइ०१,अहणोववन्नए नरए नेरइए नयरपालेहि भुज्जो २,समहिट्ठिज्जमाणे इच्छइ माणुसं लोग हहमागच्छित्तए नो चेवणं संचाएइ २ अहुजोववन्नए नरएसुनेरइए निरयवेयणिज्जसिकम्मंसिअकरवीणसि अवेइयंसि अनिज्जिनसि इच्छइ माणुसं लोगं० नो चेव णं संचाएइ ३, एवं जेरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि in Education li For Personal & Private Use Only Pujanelibrary.org

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