Book Title: Rajprashniyasutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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श्रीराजप्रश्नी मलयगिरीया वृत्तिः
चित्रस्य जितशत्रुपाश्च गमनं मू०५२
॥११७॥
अंतरा वासेहिं वसमाणे २ केइयअद्धस्स जणवयस्स मज्झमज्झणं जेणेव कुणालाजणवए जेणेव सावत्थी नयरी तेणेव उवागच्छइ २त्ता सावत्थीए नयरीए म_मज्झेणं अणुपविसइ, जेणेव जियसतुस्स रपणो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २त्ता तुरए निगिण्हइ२ त्ता रहं ठवेति २त्ता रहाओ पचोरुहइ, तं महत्थं जाव पाहुडं गिण्हइ २ ता जेगेव अभिंतरिया उवट्ठाणसाला जेणेव जियसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ २त्ता जियसत्तुं रायं करयलपरिग्गहिये जाव कटु जएणं विजएणं वडावेइ २त्ता तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेइतए ण से जियसत्तृ राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं जाव पाहुडं पडिच्छइ २ चित्तं सारहिं सक्कारेइ २ सम्माणेतिर पडिविसज्जेइ रायमग्गमोगाढं च से आवासं दलयइ। तएणं से चित्ते सारहो विसज्जिते समाणे जियसत्तस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइयत्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउरघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ २ ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ, सावत्थिं नगरिं मझमज्झेणं जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ २त्ता तुरए निगिण्हइ २त्ता रहं ठवेइ२ रहाओ पच्चोरुहइ,हाए कयवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे जिमियभुत्तुत्तरागएऽवि य णं समाणे पुटावरण्हकालसमयंसि गंधत्वेहि य णाडगेहि य उवनचिजमाणे २ उवगाइज्जमाणे २ उवलालिज्जमाणे २ इठे सहफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणु
॥११७॥
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