Book Title: Rajprashniyasutram
Author(s): Malaygiri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 240
________________ श्रीराजमश्नी मलयगिरीया वृत्तिः चित्रस्य धर्मप्राप्ति सू०५४ .तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडगतियचउक्कचचरचउमुहमहापहपहेसु महया जणसद्देइ वा जणव्हेइ वा जणकलकलेइ वा जणबोलेइ वा जणउम्मीइ वा जणउक्कलियाइ वा जणसन्निवाएइवा जाव परिसा पज्जुवासइ । तए णं तस्स सारहिस्स तं महाजणसदं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था,किण्णं अज्ज जाव सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा रुद्दमहेइ वा मउंदमहेइ वानागमहेइ वा भूयमहेइ वा जक्खमहेइ वा थूभमहेइ वा चेइयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा गिरिमहेइ वा दरिमहेइ वा अगडमहेइ वा नईमहेइ वा सरमहेइ वा सागरमहेइ वाजणं इमे बहवे उग्गा भोगा राइन्ना इक्खागा खत्तिया णाया कोरबा जाव इन्भा इन्भपुत्ताहांया कयबलिकम्मा जहोववाइए जाव अप्पेगतिया हयगया जाव अप्पेगतिया गयगया पायचारविहारेणं महयार वंदावंदएहिं निग्गच्छति,एवं संपेहेइर कंचूइज्जपुरि सद्दावेइ सदावित्ता एवं वयासीकिण्णं देवाणुप्पिया! अज सावत्थीए नगरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा०णिगच्छंति ?, तए णं से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमणगहियविणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिग्गहियं जाव वडावेत्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अन्ज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे जाव विंदाविंदएहिं निग्गच्छंति,एवं खलु भो देवाणुप्पिया! पासोवञ्चिज्जे केसीनामं कुमारसमणे जाइसम्पन्ने जाव दूइज्जमाणे इहमागए ॥११॥ Jain Education Internationa For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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