Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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[ ४ ] सापा सहिमा अधिक है, दिन २ गुन अधिकाहि । मृतक जीवत संन्न सों, तुहो तो भापा माहि ।। ९ ।।
जे कवित्त भाषा पढ़ें, जोरत भाषा शुद्ध । तिनके समुशन को इते, वरने विविध सुबुद्ध ।। १३ ।।
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अंत
सूरजसुत जम जगतअरि, जियनिपात कर जान ।
शिष्टभखी निर्दई अयुनि, रवितन जोपरि बान ।। पद्य ६७ के बाद पद्यांक नहीं दिये । लेखनकाल-१८ वी शताब्दी प्रति-पत्र १४ । पंक्ति ११ से १४ । अक्षर ३६ से ४८ । विशेष-प्रति पर कर्ता का नाम · सुबुद्धि दिया गया है जिस का आधार अज्ञात है, केवल छंद ११-१३ में सुबुद्धि नाम आता है, पर वहां रचयिता के अर्थ मे नहीं प्रतीत होता । आदि अंत दोनो ही भाग नाममय है (आदि का करतार नाम, अंत का जम नाम) कविका परिचय, रचना-समय आदि का कोई पता नही चलता।
(जयचन्द्रजी भण्डार) (६ ) स्वालकबारी । पद्य १५४ ।
आदि
खालिवारी सिरजनहार । चाहद् एक बड़ा करतार ॥ १ ॥ इस्म अल्लाहु खुदायका नांउ । गरमा धूप सायह हइ छांउ ॥ २ ॥ रसूल पड़गंवर जानि वसीठ | यार दोस्त घोलीजइ ईठ ॥ ३॥ राह तरीक सबील पहिछोनि । अरथ निहुँ का मारग जानि ॥ ४ ॥ ससियर मह दिणयर खुरसेद । काला उजला स्याह सफेद ॥ ५ ॥ नीला पीला जर्द कवृट । तांना चांना तनिस्तह पद ।। ६ ।।
संत
रखोहम् गुप्त कहूँगा ई, स्वाहम् करद करूंगा हूँ। एवाहम् आमद भाऊंगा है, म्वाहम् जिह मारूंगा हूँ। पाहम् गिम्न वठठ काहुँ, स्वाहम् शस्त चहठठ कातूं। चारमनी नो सिरजंन मेरा, जानमनी तो जीधरा मेरा ॥ ८३ ॥