Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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f२६ । लेखनकाल–१८ वी शताब्दी प्रति-पत्र ४ । पंक्ति १९ । २० । अक्षर ५६ से ६०। साइज १० x ४॥
(अभय जैन ग्रन्थालय) (१७) मनोहर मंजरी । पद्य १४८ ।
सं १६९१ । मथुरा। आदि
अथ मनोहर मंजरी लिख्यते एक दंत गुणवंत महा बलवंत विराज,
लंबोदर बहु विघन हरत, सुमिरन सुख राजै । भुजा चारि गज वदन अदन मोदक मद गाजै,
गवरिनंद आनंद कंद जगदंब सदा नै ॥ ५ ॥
दोहा कछु अनुभव कछु लोक ते, कछु वि रीति वखानि । ' करत मनोहरमंजरी, रसिक लेहु पहिचानि ॥ २ ॥
अंत--
“वरन येक नव रस मही, मधु पूरन दिनरात । करी मनोहर मंजरी, रसना कहि न अघात ॥ ४७ ॥ मथुरा को हो मधुपुरी, वसत महौली पौर । करी मनोहरमंजरी, भति अनुप रस सौर ॥ ४८ ।
इति मनोहर मंजरी संपूर्ण शुभमस्तु । लेखनकाल-२० वी शताब्दी प्रति पत्र ५। पंक्ति २३ । अक्षर ५६ । साइज १०४ ५ विशेष- नायिका भेद आदि का वर्णन है।
(अभय जैन ग्रन्थालय) ( १८) रतिभूपण | जगन्नाथ । सं० १७१४ जे० शु० १० चंद्रवार । जैसलमेर आदि
पहिले करो प्रणाम, गणपति सरसति सुगुरुको । यो मोहे मति अभिराम, तिय पिय केलि सु घरणवों ॥ १ ॥
भंत
प्रीत प्रभाठ के दर्शन चार प्रकार । जोरि करि जगन्नाथ कवि, ऐसी भांति विचार ।। १५ ॥