Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 171
________________ [ १४३ ] की दोनों रचनाओं के नाम अशुद्ध प्रतीत होते हैं । संभव है गुणमासा गुणवावनी हो। रायसिंहजी के आश्रित होने की बात भी सही नहीं है। पूर्वोक्त पद्यों से ये यति होकर मथेन (गृहस्थ ) सिद्ध होते हैं। (५) उस्तत पातशाह (६१)-इन्होंने सं० १७५८ के मिगसर सुदी १३ बुधवार को सिन्ध प्रान्तवर्ती भेहरा नामक स्थान में रागमाला ( राग चौरासी ) भरत के ग्रन्थानुसार और शाह के राज्य-काल में बनाई। (६) कर्णभूपति ( १९)-इनके रचित कृष्णचरित्र सटीक के अतिरिक्त कुछ ज्ञात नहीं । संभव है ये बीकानेर नरेश कर्णसिंहजी हों। प्रति अपूर्ण प्राप्त है अत: अन्त का अंश मिलने पर संभव है इसके रचयिता के सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राप्त हो। (७) कल्याण (१०२, ११४ )-ये खरतरगच्छीय यति थे। इन्होने सं० १८३८ के माघ बदी २ को गिरनार गजल एवं सं० १८६४ के भाद्रवा शुक्ला १४ को दौलत (रामजी) यति के लिये सिद्धाचल गजल बनाई।। (८) कल्ह (९६)–इन्होने जहाँगीर के राज्यकाल मे लाहौर मे दिल्लीराज्य-वंशावलि बनाई। इसका रचनाकाल "तौरे गगण अखरत चंद" कातिक बदी १ रविवार बतलाया है । संवत् स्पष्ट नहीं हो सका, संभव है पाठ अशुद्ध हो । (९) किशनदास (९७ )-इन्होंने औरङ्गजेब के राज्यकाल में उपरोक्त कवि कल्हकृत दिल्ली राज्य वंशावलि को आदि अन्त का कुछ भाग अपनी ओर से जोड़कर अपने नाम से प्रसिद्ध करदिया है मध्य का भाग कल्ह की वंशावलि से ज्यों का त्यो ले लिया गया है। जो वास्तव में साहित्यिक चोरी है। (१०) कुंवर कुशल (३४)-ये तपागच्छीय कनककुशल के शिष्य थे। कच्छ के राजा लखपत के आदेश से उन्ही के नाम का लखपतजससिन्धु नामक प्रन्थ बनाया। कच्छ के इतिहास में लखपत का समय सं० १७९८ से १८१७ लिखा है अतः कवि एवं ग्रन्थ का समय इसी के मध्यवर्ती है । कच्छ इतिहास के अनुसार कनककुशलजी ने राजा लखपत को ब्रजभाषा के ग्रन्थों का अभ्यास करवाया था । महाराजा ने इनके तत्वावधान में वहाँ एक विद्यालय स्थापित किया था जिसमे पढ़ने वाले विदेशी विद्यार्थियों को राज्य की ओर से पेटिया ( भोजन का समान ) दिये जाने की व्यवस्था की थी। सं० १९३२ में कनक कुशलजी की शिष्य परम्परा के भट्टारक जीवनफुशलजी की अध्यक्षता मे यह विद्यालय चलरहा था, पता नहीं वह अव चालू

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