Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 185
________________ [ १५७ 1 (७२) रामचन्द्र (द्वितीय) (५९)-इनका रत्न परीक्षा ( दीपिका ) ग्रन्थ प्राप्त है । उसमे कवि ने अपना कुछ भी परिचय नहीं दिया अतः ये उपर्युक्त रामचन्द्र से भिन्न है या अभिन्न, कहा नहीं जासकता। । (७३) रायचन्द्र ( ११७)-ये खरतरगच्छीय जैनयति थे। सं० (१८) । -१७ मे द्वितीय ज्येष्ठ वदी ५ नागपुर में आपने अवयदी शुकुनावली बनाई । संभव है कल्पसूत्र हिन्दी पद्यानुवाद के रचयिता रायचन्द्र ये ही हो जो कि सं० १८३८ चैत सुदी ९ बनारस मे बनाया गया एवं प्रकाशित हो चुका है। ' (७४) लच्छीराम ( २१,६२)-इनके रचिन दम्पतिरंग और रागविचार अन्थों के विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ मे प्रकाशित हैं। उनमें कवि ने अपना कुछ भी परिचय नहीं दिया पर मोतीलालजी मेनारिया सम्पादित खोज विवरण के प्रथम भाग में इनके करुणाभरण नाटक का विवरण प्रकाशित हुआ है। उसके अनुसार ये कवीन्द्राचार्य सरस्वती के शिष्य थे । बीकानेर की अनूप संस्कृत लाइब्रेरी मे कवीन्द्राचार्य के संग्रह की अनेक प्रतियें हैं और लच्छीराम के (१) ज्ञानानन्द नाटक (२) ब्रह्मानन्दनीय (३) विवेक सार-ज्ञान कहानी और (४) ब्रह्मतरंग की प्रतियें भी उपलब्ध हैं। इनमें से ज्ञानानन्द नाटक में कवि ने अपना एवं अपने मित्रो का परिचय निम्नोक्त पद्यों मे दिया है: देसु भदावर अति सुख वासु, तहाँ जोयसी इसुर दासु । राम कृष्ण ताके, सुत भयो, धर्म समुद्र कविता यसु छयो । तिनके मित्र शिरोमणि जानि, माथुर जाति चतुरई खानि । मोहनु मिष सुभग ताको सुतु, वसे गंभीरे सकल कला युत ॥ पुनि अवधानि परम विचित्र, दोउ लच्छीराम सो मित्र । तीनो मित्र सने सुख रहे, धनि प्रीति सब जग के कहे। अथ लच्छीराम वृत्तान्त कहीयतु है- . जमुनातीर मई इक गाऊँ, राइ कल्याण वसे तिह ठाँउ । लच्छीराम कविता को नन्दु, जा कविता सुनि नासे दंदु ॥ राइ पुरंदर करे लघु भाई, तासो मित्र बात चलाई । नाटक ज्ञानानन्द सुनावो, देहुं सुखनि अरु तुम सुख पावो । इटली के प्रसिद्ध राजस्थानी के प्रेमी विद्वान् एल० पी० टेसीटोरी के केटलॉग में इनके बुद्धिबल कथा ( सं० १६८१ रचित) का उल्लेख है। २१

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