Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 187
________________ [ १५९ ] १८ बीकानेर चौबीसटा स्तवन, सं० १७४५ मा० सु० १५. १९ शतकत्रय टबा (पंजाब भंडार) २० स्तवनादि ४० संस्कृत ग्रन्थ२१. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका वृत्ति २२. उत्तराध्यनवृत्ति २३. कालिकाचार्य कथा २४. पंचकुमार कथा २५. कुमारसंभववृत्ति, सं० १७२१ सूरत २६. मात्रिकाक्षर धर्मोपदेश स्वोपज्ञ वृत्ति, सं० १७४५ आप संस्कृत, राजस्थानी और हिन्दी तीनों भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। उपरोक्त ग्रन्थ इन तीनों भाषाओं के हैं। आपका विशेष परिचय स्वतंत्र लेख में दिया गया है जो कि शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। (७७ ) लालचन्द (१३२)-ये भी खरतरगच्छीय जैनयति थे । श्री शान्ति हर्षजी के शिष्य एवं कविवर जिनहर्ष के गुरुभ्राता लाभवर्द्धनजी का दीक्षा से पूर्ववर्ती नाम लालचन्द था । विशेष संभव आप वही हैं । इन्होंने सं० १७५३ के भादवा सुदी में अक्षयराज के लिये स्वरोदय की भाषा टीका बनाई। आपके अन्य प्रन्थ इस प्रकार हैं: (१) विक्रम नवसौ कन्या चौपाई एवं खापरा चोर चौपाई, सं० १७२३ श्रावण सु० १३ जेतारण । (२) लीलावती रास, सं० १७२८ कातिक सुदि १४ । (३) लीलावती रास (गणित), स० १७३६ असाद बदी५, बीकानेर कोठारी जैतसी के लिये। (४) धर्मबुद्धि पापबुद्धि रास, सं० १७४२ सरसा। (५) पांडवचरित्र चौपाइ, सं० १७६७ बील्हावास। (६) विक्रम पंचदंड चौपाई सं० १७३३ फाल्गुन । (७) शकुनदीपिका चौपाई सं० १७७० वैसाख सुदी ३ गुरुवार । . मिश्रबन्धुविनोद के पृ० ५०८ में इनके लीलावती ग्रन्थ का उल्लेख है पर वहा8 सौभाग्य सूरि के शिष्य एवं नैणसी के आश्रित लिखा है वह ठीक नहीं है । आपके

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