Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
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मिश्र-बन्धु - विनाद के पृ० ८९३ में गुणविलास के रचयिता जोधपुर के ठाकुर केसरीसिंह के श्राश्रित सागरदान चारण (सं० १८७३ ) का उल्लेख है पर वे संभवतः भिन्न हैं ।
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(८९) सुखदेवादि (९२) - १७ वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान् कवीन्द्राचार्य ने काशी और प्रयाग का कर छुड़वाया था- इस कार्य की प्रशंसा में तत्कालीन काशीनिवासी कवियों ने कुछ पद्य बनाये जिनका संग्रहग्रन्थ कवीन्द्रचंद्रिका है । इसमें तत्कालीन प्रसिद्धाप्रसिद्ध ३० कवियों की कविताएँ हैं जिनमें दो स्त्री कवयित्रियां भी हैं ।
मिश्रबन्धु-विनोद के पृष्ठ ४७६ में सुप्रसिद्धि कवि सुखदेव मिश्र का परिचय देते हुए इनके काशी में एक सन्यासी से तंत्र एवं साहित्य पढ़ने का उल्लेख है । संभव है वे सन्यासी कवीन्द्राचार्य ही हों । कवीन्द्रचन्द्रिका में जिस सुखदेव कवि के पद्य उपलब्ध हैं विशेष संभव वे वृतविचार रसार्णव आदि ग्रन्थों के रचयिता श्राचार्य सुखदेव मिश्र ही हैं ।
(९०) सुबुद्धि (३) - आपकी रचित आरंभ नाममाला उपलब्ध है, मिश्रबन्धु विनोद के पृ० ४६० में सुबुद्धि का सं० १७१२ से पूर्व होने का निर्देश है पर वहाँ उनके ग्रन्थ का नाम नहीं लिखा गया । पता नहीं उपर्युक्त सुबुद्धि आरंभ नाममाला के कर्त्ता ही हैं या उनसे भिन्न अन्य कोई कवि हैं ।
( ९१ ) सूरतमिश्र (१० ) - आप प्रसिद्ध टीकाकार एवं सुकवि थे । ये आगरे के निवासी कन्नोजिया ब्राह्मण सिंहमनिमिश्र के पुत्र थे । मिश्र बन्धु विनोद पृ० ५५३ में इनके टीकाग्रन्थों को प्रशंसा करते हुए निम्नोक्त ग्रन्थों का निर्देश किया है ।
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( १ ) अलंकारमाला सं० १७६६
(२) बिहारी सतसई की अमरचन्द्रिका टीका सं० १७९४
( ३ ) कविप्रिया टीका
( ४ ) नखशिख
(५) रसिकप्रिया का तिलक
(६) रससरस
(७) प्रबोधचंद्रोदय नाटक
(८) भक्तिविनोद
( ९ ) रामचरित्र