Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 179
________________ [ १५१ ] सार मैंने 'हिन्दुस्तानी' वर्ष १६ अंक ३ मे प्रकाशित कर दिया है। 'जसवन्त उदोत' में कवि ने नायिकावर्णन के सम्बन्ध में विस्तार से जानने के लिये अपनी 'रस रत्नावली' ग्रन्थ का निर्देश किया है जो अद्यावधि अप्राप्त है । (४०) दीपचन्द (४५)-ये खरतरगच्छीय थे । इनके रचित 'लंघन-पथ्यनिर्णय' नामक संस्कृत ग्रन्थ की प्रति हमारे संग्रह मे है जो कि सं० १७९२ माघ सुदि १ जयपुर मे रचित है । प्रस्तुत ग्रन्थ मे इनके बाल तन्त्र भाषा वचनिका का विवरण दिया है। (४१) दीपविजय ( १०९-११५ )-ये तपागच्छीय रत्नविजय के शिष्य थे। इनका विरुद “कविराज बहादुर" था। आपकी निम्नोक्त रचनाएँ ज्ञात हुई है। (१) रोहिणी स्तवन सं० १८५९ भा० सु० खंभात (२) केसरियाजी लावणी-ऋषभ स्तवन सं० १८७५ (३) सोहम कुल पट्टावलि रास (ग्रन्थाग्रन्थ २०००) सं० १८७७ सूरत (४) पाश्वनाथ ५ बधावा सं० १८७९ (५) कवि तीर्थ स्तवन, सं० १८८६ (६) अड़सठ आगम अष्ट प्रकार री पूजा, सं० १८८६ जम्बूसर (७) नन्दीश्वर महोत्सव पूजा सं० १८८९ सूरत (८) सूरत गजल (९) खंभात गजल ( १० ) जम्बूसर गजल (११) उदयपुर गजल (१२) बड़ौदा गजल । ये पॉचो गजल सं १८७७ की लिखित प्रति मे उपलब्ध है जो कि आगरे के विजय धर्म सूरि ज्ञान मन्दिर में है। (१३) माणिभद्रछन्द (१४) चन्दगुणावली पत्र (१५) अष्टापद पूजा, सं० १८९२ फागुन, रांदेर (१६) महानिशीथ हुंडी (प्र० जैन साहित्य संशोधक ) (१७) नवबोल चर्चा सं० १८७६ उदयपुर (४२) दुर्गादास (११२)-ये खरतरगच्छीय यति विनयानन्द (जिनचन्द्रसूरि शाखा ) के शिष्य थे। इन्होंने दीपचन्द के आग्रह से सं० १७६५ पौष वदि ५ मे 'मरोट गजल' बनाई। इनका अन्य ग्रन्थ जम्बू चौपाई हमारे संग्रह मे है । इसकी रचना सं० १७९३ श्रावणसुदि ७ सोमवार को बाकरोद में हुई है। (४३) दूलह (२३ )-१९ वी शताब्दी के कवि दूलह का 'कविकुलकंठाभरण' हिन्दी साहित्य मे प्रसिद्ध है । मिश्रबन्धुविनोद पृ० १८१ में भी इसका उल्लेख है ।

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